उज्ज्वल दुनिया, हजारीबाग(अजय निराला)। भारतीय इतिहास में 46 वर्ष पहले आज ही के दिन 25-26 जून की रात घोषित इमरजेंसी की यादों को ताजा करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता स्वरूपचंद जैन कहते हैं कि मीसा आंदोलन के तहत उनकी दूसरी बार गिरफ्तारी हुई थी।
इनमें कई छात्र नेताओं की तो पहले ही गिरफ्तारी हो चुकी थी। उनके साथ रहे गौतम सागर राणा, अशोक चौरसिया आदि पहले ही हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद हो चुके थे।
तब संयुक्त बिहार रहने से उधर से भी सैकड़ों आंदोलनकारियों को बंदी बनाया गया था।
मामला तो मार्च से ही गर्म होना शुरू हो गया था। इससे पहले 18 अगस्त 1974 में मीसा आंदोलन के दौरान उनकी पहली बार गिरफ्तारी हुई थी।
25-26 जून 1975 की रात देश में इमरजेंसी लागू किया गया।
इस आपातकाल के दौरान उनकी दूसरी बार गिरफ्तारी मार्च 1976 में हुई थी। पूरे वर्षभर वह अन्य बंदी साथियों के साथ जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा (तब सेंट्रल जेल) हजारीबाग की चहारदीवारी में काटा था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सत्ता जाने के बाद नई सरकार के गठन के साथ मार्च 1977 में वे अन्य आंदोलनकारियों के साथ जेल से रिहा हुए थे।
आपातकाल का दौर काफी संघर्षों भरा रहा। जेपी के अनुयायी सरकार के विरोध में लगातार अभियान चलाते रहे।
इमरजेंसी लागू होने के बाद भी देश के युवा छात्रों ने हार नहीं मानी और केंद्र सरकार के इस सख्त और अदूरदर्शी व असंवैधानिक कदम का विरोध जताते रहे।
नतीजतन इंदिरा गांधी को सत्ता से हटना ही नहीं पड़ा, बल्कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा।
देश की जनता ने यह साबित कर दिया कि भारत में तानाशाही नहीं चलेगी।
यहां जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता की ही लोकतांत्रिक सरकार चलेगी।
दमन का शासन वे हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते और इसके लिए पूरे देशवासियों ने एकजुटता दिखाई।