
देश के पांच राज्यों में चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। पूर्वी भारत के बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव (Vidhansabha Election) होंगे तो दक्षिण के तीन राज्यों (तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी) में भी चुनावी रणभेरी बज चुकी है। असम को छोड़कर कहीं भी भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला नहीं है। दक्षिण के तीनों राज्यों में तो कांग्रेस का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से ही है। वहीं बंगाल में भाजपा और तृणमूल के बीच सीधी टक्कर होती दिख रही है। हालांकि वामदल और कांग्रेस ने भी गठबंधन किया है लेकिन अधिकांश लोगों का अनुमान है कि बंगाल में लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन तीसरे नंबर पर ही रहेगा ।
बंगाल और असम से राहुल को नहीं है उम्मीद!
राहुल गांधी को पता है कि पूर्वी भारत के दोनों राज्यों में कांग्रेस की हालत पतली है । बंगाल में लेफ्ट के साथ सरकार बनने की कोई उम्मीद उन्हें नहीं दिखती, लेकिन असम का मैदान अभी भी खुला है। हालांकि पिछले पांच सालों में भाजपा वहां सांगठनिक रुप से मजबूत तो हुई है लेकिन CAA-NRC के मुद्दे को कांग्रेस वहां अपने लिए उम्मीद की किरण देख रही है।
बंगाल में कभी ममता के खास रहे फुरफुरा शरीफ के मौलवी पीरजादा अब्बास सिद्दीकी को भी कांग्रेस ने जोड़ा है। उनकी पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट लेफ्ट-कांग्रेस अलायंस का हिस्सा है। इसे मुस्लिम वोटों को पाले में खींचने की कवायद के तौर पर देखा गया। लेकिन पीरजादा अब्बास भी लेफ्ट-कांग्रेस को विधानसभा चुनावों (Vidhansabha Election) में मुस्लिम वोट दिला सकेंगे इसमें शक है । क्योंकि बंगाल में सबको पता है कि इस बार मुकाबला ममता बनर्जी बनाम बीजेपी है।
केरल पर क्यों फोकस कर रहे हैं राहुल ?
केरल के मतदाता एक बार लेफ्ट गठबंधन को तो दूसरी बार कांग्रेस के यूडीएफ (UDF) गठबंधन को मौका देते रहे हैं। कांग्रेस में फिलहाल लेफ्ट की सरकार है इस हिसाब से अबकी बारी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ (UDF) गठबंधन की है। राहुल गांधी जानते हैं कि जहां जीतने की उम्मीद हो वहीं समय देने में फायदा है।
तमिलनाडु और पुडुचेरी में क्या ?
तमिलनाडु में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां वहां के रिजनल पार्टी के सहयोगी की भूमिका में हैं। भाजपा वहां सत्तारुढ़ AIADMK के साथ सहानुभूति रखती है। वैसे भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी की तारीफ कर प्रधानमंत्री मोदी ने संकेट दे ही दिए हैं। वहीं कांग्रेस स्टालिन की DMK के साथ गठबंधन में जाना चाहती है। हालांकि स्टालिन की ओर से अभी कांग्रेस को कई ठोस भरोसा नहीं मिला है । पॉलिटिकल पंडितों से बात करें तो ऐसा लगता है कि स्टालिन (DMK) की स्थिति इस बार मजबूत है। ऐसे में राहुल तमिलनाडु में स्टालिन पर अटैक न करते हुए भाजपा और कृषि कानून की बात ही अधिक कर रहे हैं।