सीतापुर में ऐतिहासिक मंदिर-मस्जिद पर चला बुलडोजर, प्रशासन की बड़ी कार्रवाई!
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। विकास कार्यों को प्राथमिकता देते हुए प्रशासन ने ओवरब्रिज की सर्विस लेन में आ रहे एक सदी पुरानी मस्जिद और एक मंदिर पर बुलडोजर चला दिया। यह कार्रवाई शुक्रवार देर रात पुलिस और प्रशासन की कड़ी निगरानी में पूरी की गई।
1899 की ऐतिहासिक मस्जिद और मंदिर हुए धराशायी!
सीतापुर के सिधौली कोतवाली क्षेत्र में एक महत्वाकांक्षी ओवरब्रिज निर्माण योजना पर काम चल रहा है। इस परियोजना के लिए सर्विस लेन बनाई जानी है, लेकिन इसके रास्ते में एक मंदिर और एक मस्जिद आ रहे थे। प्रशासन ने नियमों का पालन करते हुए दोनों संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया।
इसमें सबसे बड़ी चर्चा का विषय वह मस्जिद रही, जो आजादी से पहले 1899 में बनाई गई थी। मस्जिद के अवशेषों में साल 1899 की ईंटें मिलीं, जो इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं। प्रशासन ने धार्मिक सौहार्द बनाए रखते हुए मंदिर और मस्जिद दोनों को हटाने का फैसला किया और दोनों पक्षों को मुआवजा भी दिया गया।
रातोंरात बुलडोजर एक्शन, नहीं हुआ कोई विरोध!
शुक्रवार देर रात पुलिस-प्रशासन की देखरेख में बुलडोजर चला और दोनों धार्मिक स्थलों को शांतिपूर्ण तरीके से ध्वस्त कर दिया गया। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही। इंस्पेक्टर बलवंत शाही ने बताया कि यह कार्रवाई सभी पक्षों की सहमति से की गई और कोई भी व्यवधान उत्पन्न नहीं हुआ।
मुआवजा और प्रशासन का रुख
प्रशासन ने इस ध्वस्तीकरण से पहले दोनों धर्मस्थलों के प्रबंधन से विस्तृत चर्चा की और सहमति लेने के बाद ही कार्रवाई की गई।
- मस्जिद के लिए प्रशासन ने 48 लाख रुपये का मुआवजा दिया।
- मंदिर प्रबंधन को भी उचित मुआवजा प्रदान किया गया।
- प्रशासन ने यह भी सुनिश्चित किया कि स्थानीय समुदायों के बीच कोई टकराव न हो और धार्मिक भावनाओं का सम्मान बना रहे।
विकास बनाम विरासत – आगे क्या?
इस कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों के लिए सरकार कोई समझौता नहीं करेगी। ओवरब्रिज का निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास राज्य की प्राथमिकताओं में से एक है और यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी अवैध निर्माण या बाधा इसके आड़े न आए।
लेकिन, इस कार्रवाई ने एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है – क्या ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करते हुए विकास संभव नहीं? 1899 की मस्जिद और मंदिर को गिराने से यह बहस फिर से छिड़ गई कि आधुनिक विकास और ऐतिहासिक विरासत के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
जनता की प्रतिक्रिया और राजनीतिक माहौल
इस कार्रवाई पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह विकास के लिए जरूरी कदम था, जबकि कुछ का कहना है कि इतिहास और आस्था को बचाने के उपाय भी किए जा सकते थे। हालांकि, प्रशासन ने इस मामले में पूरी सावधानी और निष्पक्षता बरतते हुए दोनों पक्षों की सहमति से ही कार्रवाई की है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों की गति तेज़ हो चुकी है और सरकार निर्णायक फैसले ले रही है। यह कार्रवाई दर्शाती है कि राज्य सरकार बुनियादी ढांचे के निर्माण में कोई बाधा स्वीकार नहीं करेगी, चाहे वह कितनी भी ऐतिहासिक या धार्मिक रूप से संवेदनशील क्यों न हो।
आगे देखने वाली बात यह होगी कि ऐसे मामलों में प्रशासन भविष्य में क्या रुख अपनाएगा – क्या विरासत और विकास के बीच कोई नया समाधान निकलेगा, या फिर इसी तरह बुलडोजर चलता रहेगा?