नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन से सभी आयात पर 125% टैरिफ लगाने के फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। इस कदम से उत्पन्न अनिश्चितता से भारतीय निर्यातकों की चिंता भी गहराई है, जो पहले से ही अलग-अलग शुल्कों और व्यापार बाधाओं से जूझ रहे हैं।
इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (EEPCI) के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने ETV भारत से विशेष बातचीत में कहा, “हम पर पहले ही तीन स्तरों पर टैरिफ लागू हैं—12 मार्च को स्टील और एलुमिनियम पर, 26 मार्च से ऑटो कंपोनेंट्स पर 25% शुल्क, और 2 अप्रैल से 10% बेसलाइन टैरिफ। केवल 9 अप्रैल का देश-विशेष टैरिफ फिलहाल स्थगित किया गया है, लेकिन इससे भी असमंजस और बढ़ा है।”
क्या हैं प्रमुख चुनौतियाँ:
चड्ढा ने समझाया, “निर्यात ऑर्डर तैयार होने में 60 दिन और समुद्री रास्ते से भेजने में 60 दिन और लगते हैं। इस 120 दिन की प्रक्रिया में यह अनिश्चितता बनी रहती है कि जब माल ग्राहक तक पहुंचेगा तब टैरिफ दर क्या होगी। ऐसे में ग्राहक को डिस्काउंट देना नुकसानदायक साबित हो सकता है, क्योंकि फिर वह नया सामान्य बन जाएगा।”
नए बाज़ारों की तलाश:
चड्ढा ने सरकार से अनुरोध किया कि श्रेणी C देशों के लिए एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी को उदार बनाया जाए ताकि अमेरिका पर निर्भरता घटाई जा सके। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को लैटिन अमेरिका, सेंट्रल अमेरिका, उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका जैसे नए बाज़ारों में संभावनाएं तलाशनी चाहिए। “यदि सरकार मदद करे तो यह ज्यादा स्थायी समाधान होगा।”
वैश्विक विश्लेषण:
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि ट्रंप का यह कदम चीन के प्रतिरोध के जवाब में लिया गया राजनीतिक फैसला दिखता है। “125% टैरिफ से चीन पर निशाना साधा गया है, जबकि अन्य देशों को 90 दिनों तक 10% की राहत दी गई है। यह कदम वैश्विक अलगाव से बचने की कोशिश भी है।”
दूसरा व्यापार युद्ध?
श्रीवास्तव ने इसे ट्रेड वॉर 2.0 का नाम दिया, जो पहले 2018 से 2023 के बीच देखा गया था। हालांकि इस बार शुरुआत में ऐसा लगा कि अमेरिका बाकी दुनिया पर निशाना साध रहा है, लेकिन 9 अप्रैल के फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि मुख्य लक्ष्य फिर से चीन ही है।
भारत के लिए सुझाव:
GTRI और EEPCI दोनों ने सरकार को सलाह दी है कि भारत को तत्काल यूरोपीय संघ, यूके और कनाडा के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके साथ ही चीन और रूस जैसे देशों के साथ व्यापक साझेदारियों पर भी विचार करना चाहिए।
जापान, दक्षिण कोरिया और ASEAN देशों के साथ मौजूदा व्यापार संबंधों को और गहराई देना भी जरूरी है।
घरेलू सुधार भी अनिवार्य:
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टैरिफ संरचना का सरलीकरण
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गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों का पारदर्शी और न्यायसंगत क्रियान्वयन
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जीएसटी प्रक्रियाओं में सुधार
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ट्रेड प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण व सुगमता
इन कदमों से भारत वैश्विक व्यापार में नए अवसरों का लाभ उठा सकता है, हालांकि इसमें समय लगेगा।