नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 30 अगस्त, 2025 को चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में पहुंचना यूरेशिया में बदलते रणनीतिक परिदृश्य में भारत की सक्रिय भागीदारी का संकेत है।
नई दिल्ली की प्राथमिकता इस सम्मेलन में आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करना है, विशेषकर सीमा पार से उत्पन्न खतरों की स्पष्ट निंदा। वहीं, सम्मेलन की पृष्ठभूमि में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ वैश्विक व्यापार और बहुपक्षीय मंचों जैसे SCO की स्थिरता पर असर डाल रहे हैं।
SCO 10 सदस्य देशों का एक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसमें भारत और पाकिस्तान 2017 में शामिल हुए। 2023 में ईरान और 2024 में बेलारूस ने सदस्यता प्राप्त की। यह संगठन दुनिया के 24 प्रतिशत क्षेत्र और 42 प्रतिशत जनसंख्या को कवर करता है।
मोदी का यह चीन दौरा 2018 के बाद पहला है, जो सीमा तनाव और लंबी यात्रा ठहराव के बाद सम्मेलन के महत्व को बढ़ाता है। भारत सम्मेलन में आतंकवाद विरोधी मजबूत प्रतिबद्धता, सीमा पार आतंकवाद की स्पष्ट निंदा और सहयोग बढ़ाने की दिशा में पहल करेगा।
भारत की अन्य “रेडलाइन” में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़े विवादित क्षेत्रों का समर्थन न करना और रणनीतिक स्वायत्तता को सीमित करने वाली भाषा को शामिल न करना शामिल है।
SCO की बैठक में अमेरिकी टैरिफ के आर्थिक प्रभावों को देखते हुए भारत क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग, वैकल्पिक भुगतान प्रणाली और आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाएगा।
सीधे द्विपक्षीय मुलाकातों में मोदी का चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से LAC पर शांति बहाल करने और रक्षा-ऊर्जा सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित रहेगा। रूस के राष्ट्रपति पुतिन से ऊर्जा, रक्षा और द्विपक्षीय स्थिरता पर चर्चा होगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, SCO का मुख्य एजेंडा आतंकवाद है, लेकिन पाकिस्तान और चीन के प्रभाव में इसे कमजोर किया गया है। तियानजिन सम्मेलन भारत के लिए न केवल तत्काल रणनीतिक लाभ बल्कि बहुपक्षीय स्तर पर स्थिर और व्यावहारिक समाधान पाने का अवसर भी है।