Sunday 8th of September 2024 04:56:37 AM
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खटिए के सहारे मरीज, जेटके कुम्हारजोरी (पहाड़िया टोला) है अभावग्रस्त।

खटिए के सहारे मरीज, जेटके कुम्हारजोरी (पहाड़िया टोला) है अभावग्रस्त।

बोरियो- तमाम सरकारी दावों के बीच बोरियो प्रखंड मुख्यालय के सुदूरवर्ती गांव जेटके कुम्हारजोरी से एक मामला सामने आया है। गांव की महिला बेबी पहाड़िन (उम्र 32) पति चंदू पहाड़िया की तबियत अचानक गुरूवार की रात बिगड़ गई, ग्रामीणों के मुताबिक़ यह डायरिया का प्रकोप था। इसके बाद शुक्रवार के दोपहर अधिक तबियत बिगड़ जाने के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बोरियो लाने के लिए परिजन तैयार हुए। लेकिन बेचारी बीमार से ग्रस्त महिला को खटिए के सहारे ग्रामीणों के कांधे पर चढ़कर आना पड़ा। क्योंकि पहाड़िया टोला से लेकर जेटके कुम्हारजोरी पंचायत भवन तक सड़क ही नहीं है। ब्रिटिश हुकूमत के काल में कच्ची सड़क का निर्माण करवाया गया था, लेकिन आजाद भारत की सरकारी तंत्र ने सड़क जैसी साधन तक यहां पर विकसित नहीं किया। इतना ही नहीं खटिए में लादकर महिला को पंचायत भवन तक लाने के बाद, निजी ऑटो में बीच सीट पर सवार कर बोरियो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया। इस महिला मरीज को एंबुलेंस तक की सुविधा सरकारी व्यवस्था ने मुहैया नहीं करवाया, जबकि महिला डायरिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थी। गांव में पेयजल की व्यवस्था ठीक नहीं है, इस कारण आए दिन डायरिया के मामले मिलते रहते हैं। कमोबेश जिले के अधिकतर पहाड़िया गांवो में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है। गांव वालों की मजबूरी यह है कि स्थानीय पत्रकारों को कई विडियो क्लिप भी बनाकर भेजा है, ताकि ख़बर आला अधिकारियों तक पहुंचे, और इन ग्रामीणों के तकलीफ़ को दूर किया जा सके।
इस मामले में जब जानकारी लिया गया तो ग्रामीणों ने बताया कि कई बार बोरियो प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी को इसका आवेदन दिया गया है लेकिन कोई भी जिम्मेदार सुनने को तैयार नहीं है, और यही वजह है कि ब्रिटिश हुकूमत से आज तक सड़क नहीं बन पाई।

सरकारी दावों में आश्चर्य होता है कि पीवीजीटी श्रेणी में रखे गए आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय के विकास को लेकर कई योजनाओं का संचालन सरकारी दफ्तरों से किया जाता है। लेकिन जब धरातल की सच्चाई देखी जाती है तो सब फुस्स नजर आता है। और जबकि इन्हीं पदाधिकारियों के द्वारा कई दफा आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों के विकास को लेकर बड़े बड़े दावे किए जाते हैं, कई सरकारी कार्यक्रमों का दिखावा किया जाता है। अफ़सर कहते दिख जाएंगे कि पहाड़िया समुदाय के लिए उनका विभाग चिंतित है लगातार सुधार की दिशा में पहल किया जा रहा है, लेकिन सुधार हो कहां रहा है.. किसी को नहीं पता।

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