29 फरवरी 2005 को बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का हेलीकॉप्टर आपात स्थिति में लैंडिंग गया के पड़रिया गांव में हुई थी। वे चुनावी सभा को संबोधित करने झारखंड के टंडवा जा रहे थे। जंगल पहाड़ से घिरे बाराचट्टी थानाक्षेत्र का पड़रिया गांव घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में है। कहा जाता है कि जिस समय उनका हेलीकॉप्टर लैंड किया उस समय पास में ही नक्सलियों का हथियारबंद दस्ता टिका हुआ था। हेलिकॉप्टर उतरते ही आसपास ले लोग कौतूहल बस वहां पहुंच गए।
नायडू जब बाहर निकले तो स्थानीय एक व्यक्ति ने उनके कान कहा कि जितना जल्दी वे यहां से निकल जाएं क्योकि कुछ दूर पर ही नक्सलियों का जमावड़ा है। इससे वे काफी डर गए और भीड़ में ही बाइक के साथ मौजूद राजेन्द्र साव से स्थानीय पुलिस स्टेशन तक पहुचाने का आग्रह किया। पहले तो राजेन्द्र सकुचाया परंतु और लोगों के कहने और मौके की नजाकत समझते हुए वह तैयार हो गया। उस समय इस इलाके की सड़क काफी जर्जर थी। नायडू साहब इतने डरे हुए थे कि रास्ते मे अपनी पहचान छिपाने के लिए राजेन्द्र से आग्रह किया था कि कोई पूछे तो वह उन्हें अपना सगा मामा बताये। राजेन्द्र ने वेंकैया नायडू और उनके सहयोगी दोनों को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाकर बाराचट्टी पुलिस स्टेशन तक पहुचाया।
राजेन्द्र साव बताते हैं कि उन्हें अपनी बाइक पर बिठाकर कुछ दूर ही गये थे कि उनके मोबाइल फोन पर सूचना मिली कि माओवादियों ने हेलिकॉप्टर को फूंक दिया है। इससे वह काफी डर गया और घर वापस नही लौटा। वेंकैया नायडू को वहां से निकलते ही हेलीकॉप्टर का पायलट पैदल ही बाराचट्टी की ओर जाने लगा,जिसे एक बाइक सवार ने मदद की और थाना तक पहुचाया। ग्रामीण वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनका भतीजा नन्दन कुमार ने पायलट को पहुचाया था जिसे बाद में उन्होंने एयर डेक्कन में नॉकरी लगवा दी थी।
पास में ही मौजूद माओवादी दस्ता को हेलीकॉप्टर लैंड होने की खबर मिली तो वे वहां पहुच गये और पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। वे इस बात से बौखला रहे थे कि नायडू उनके हांथों से निकल गए। जानकारी मिली कि राजेन्द्र ने उन्हें वहां से निकाला है। इस बात से बौखलाए नक्सली राजेन्द्र के घर पहुच गये और उनके भाई सुरेंद्र का अपहरण कर लिया। सुरेंद्र बताते हैं कि उन्हें जंगल मे के जाकर बुरी तरह नक्सलियों ने पिटाई की थी। वे लोग उनके भाई राजेन्द्र को खोज रहे थे जो डर से अपने घर लौटे ही नही थे।
वेंकैया नायडू जी के सहयोग दोनों भाईयों को छत्तीसगढ़ में नॉकरी मिल गयी थी जहां वे कई वर्षों तक रहे। अभी वे अपने गांव में ही रह रहे हैं।
राजेन्द्र और उनके परिवार का जीवन एक छोटी से दुकान के बदौलत चल रही है। नक्सलियों का ख़ौफ़ अभी भी इनपर बरकरार है यही वजह है कि राजेन्द्र इस बारे में खुलकर बात करने से कतराते हैं। वे बताते हैं कि घंटा-दो घंटा ही गांव में रुकते हैं, शाम होने से पहले शोभ बाजार चले जाते हैं। बेटा रांची में पढ़ता है जिसका श्रेय ये वेंकैया नायडू को ही देते हैं। पूरे परिवार को अभी भी उनसे उम्मीद टिकी हुई है।