चीफ जस्टिस एनवी रमना ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब भी कोई पार्टी सत्ता में होती है तो पुलिस अधिकारी उनके साइड होते हैं और एक्शन लेते हैं। लेकिन जब विरोधी दल सत्ता में आते हैं तो ऐसे पुलिस अधिकारियों को निशाना बनाते हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना ने (NV Ramana) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सत्ताधारी पार्टी पुलिस को अपने लठैत की तरह इस्तेमाल करती है। उसपर दबाव बनाकर सही-गलत हर तरह के काम करवाती है। कुछ अधिकारी सत्ता को खुश करने के लिए भी हदें पार कर देते हैं। लेकिन जब सत्ता बदलती है तो ऐसे अधिकारियों को सत्ता में आने वाली दूसरी पार्टी प्रताड़ित करती है। ये बहुत ही गंभीर मसला है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिन्दर पाल सिंह के खिलाफ देशद्रोह के मामलों से उन्हें राहत देते हुए कही। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ये बेहद परेशान करने वाला ट्रेंड है। जैसे ही कोई दूसरी सरकार आती है, वो सीधे अपने विरोधियों पर देशद्रोह का ही मामला बनाती है। भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के आरोप में जीपी सिंह को 5 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था । इसके एक हफ्ते बाद ही उनपर देशद्रोह की धाराएं लगा दी गई थी। इससे पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनपर देशद्रोह की धाराएं हटाने वाली जीपी सिंह की याचिका खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जीपी सिंह को राहत देते हुए टिप्पणी की कि ये बहुत ही परेशान और बेचैन करने वाला ट्रेंड है। और बहुत हद तक खुद पुलिस डिपार्टमेंट इसके लिए जिम्मेदार है। जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होती है तो पुलिस वाले उसकी इस तरह चिरौरी करते हैं मानो कानून कोई मा.ने ही नहीं रखता। और जब दूसरी पार्टी सत्ता में आती है तो है तो सीधे देशद्रोह का ही केस बनाती है। मानो वो पिछली सरकार के चमचे अधिकारियों को मिटा ही देना चाहती हो। ये सब बहुत ही गलत है।
छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो ने रायपुर, राजनंदगांव और ओडिशा में जीपी सिंह के 15 ठिकानों पर छापेमारी की थी। इसके बाद सिंह पर आईपीसी की धारा 124 ए (घृणा या अवमानना का प्रयास या सरकार के प्रति असंतोष या उत्तेजना पैदा करने का प्रयास), और 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत आरोप लगाया गया था। , निवास, भाषा, आदि, और सद्भाव बनाए रखने के प्रतिकूल कार्य करना)।