गुरुवार को अचानक प्रशांत किशोर शरद पवार से मुलाक़ात करने उनके घर पहुच गए। प्रशांत किशोर को शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले अपने पिता से मिलवाने लेकर गई थी । करीब डेढ़ घंटे तक तीनों के बीच बंद कमरे में बातचीत होती रही।
क्या सिर्फ तबीयत का हाल जानने आए थे पीके ?
बैठक के बाद मीडिया के बहुत कुरेदने के बाद प्रशांत किशोर ने बस इतना कहा कि ये courtesy call था और वे पवार साहब का हालचाल लेने पहुंचे थे । अब जरा सोचिए कि दिल्ली से प्रशांत किशोर जैसा शख्स सुप्रिया सुले को लेकर आया और वो डेढ़ घंटे तक बंद कमरे में सिर्फ हाल-चाल पूछता रहा ? गौरतलब है कि शरद पवार की न तबियत खराब है न ही वे किसी दूसरे संकट में हैं।
इस मुलाक़ात से सिर्फ दो दिन पहले ममता बनर्जी ने कोलकाता में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि देश में क्षेत्रीय दलों का मोर्चा बनना चाहिए । ममता ने जोर देकर कहा कि उनकी दिल्ली को लेकर कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। वे तो बस इतना जानती हैं कि मोदी जैसे शख्स को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहिए।
पंजाब और यूपी में भी होगा Experiment
पंजाब की बात करें तो वहां अकाली दल और बसपा के बीच समझौता हुआ है। यानि इस बार पंजाब का चुनाव चतुष्कोणीय होने वाला है – कांग्रेस, आप, अकाली-बसपा गठबंधन और बीजेपी। पंजाब में क्षेत्रीय दलों का मोर्चा आकार ले रहा है, लेकिन उसमें आम आदमी पार्टी और कांग्रेस नहीं है। क्या ये 2024 की तस्वीर कुछ क्लियर नहीं करता।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव इस बार राष्ट्रीय लोकदल और छोटे-छोटे दलों से गठबंधन कर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। दिल्ली के कुछ स्पिन मास्टर ये कोशिश कर रहे हैं कि मायावती भी इसमें शामिल हो जाए ।
400 लोकसभा सीटों पर क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की योजना
प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने देशभर में 400 ऐसे लोकसभा सीटों की पहचान की है, जहां क्षेत्रीय दल भाजपा या कांग्रेस को मात देने की स्थिति में हैं। इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों को एक करने की कोशिश अभी से जारी है। चाहे वो विधानसभा चुनाव हो, या फिर स्थानीय स्तर का चुनाव। क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में पीके को शरद पवार की मदद चाहिए। दक्षिण भारत में स्टालिन, पिनराई विजयन, चंद्रबाबू नायडू, बंगाल में ममता बनर्जी, पंजाब में अकाली, बिहार में तेजस्वी और यूपी में RLD और सपा …अगले डेढ़ साल तक इन्हीं दलों पर फोकस रखना है । अगर यह प्रयोग आंशिक रूप से भी सफल रहा तब अगला कदम उठाया जाएगा।
पीएम का चेहरा कौन होगा?
क्षेत्रीय दलों के मोर्चे की सफलता को लेकर सबसे बड़ा सवाल है कि चेहरा कौन होगा और इन्हें एकजुट कैसे रखा जा सकेगा? पिछले अनुभव तो यही बताते हैं कि मेंढकों को तराजू पर तौलना आसान नहीं। यकीन मानिये, ये बात शरद पवार भी जानते हैं और प्रशांत किशोर भी । ममता बनर्जी का ये कहना कि दिल्ली को लेकर उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, इसी दिशा में पहला कदम है । इस बार अंतर सिर्फ इतना है कि तेजस्वी, अखिलेश आदि किसी की महात्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की नहीं है। अधिकांश क्षेत्रीय दल तो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।