उज्ज्वल दुनिया, कुमार गौरव(हजारीबाग)। इंडिया 1947 में आजाद हुई यानी हम इंडियंस को अपनी व्यवस्था बनाने का अधिकार हम सभी को मिला, जबकि मानसिकता है कि गोरे चले गए आजादी हो गई।
1947 की इंडिया की अवाम अपनी राजनेताओं पर यह निश्चित हो गई कि यह राजनेता प्यारा भारत, सुंदर भारत बनाएंगे’ लेकिन वर्ष 2021 और 1947 के बीच तकरीबन 74 साल बीत गए, मगर हम भारतीय उसी मुहाने पर खड़े हैं, जो स्थिति 1947 में थी।
गुलाम इंडिया में मजदूर कल-कारखानों में शोषण का शिकार होते थे।
युवाओं के पास शिक्षा का अभाव था। किसान जो अपनी मेहनत और लगन से अनाज का भंडार खड़ा करते थे, यहां तक कि किसान अनाज उत्पादन में एक परिवार की तरह उसकी सेवा कर अनाज उपजाते थे।
लेकिन वे उनके निवाले नहीं बना करते थे। ऐसे अनेक उदाहरण हैं अंग्रेजों के शोषण के, जिसकी गिनती करना मूर्खता होगी।
मगर आज जरा सोचिए कि इंडिया उस हालात से बाहर निकल पाई है जो 1947 में थी।
आज भी मजदूर दो वक्त की रोटी से ऊपर नहीं सोच सकते, छात्र मंहगी और व्यावसायिक शिक्षा से दूर हैं और किसानों के हाथ आज भी इंडिया के अनाज के गोदाम को भर्ती हैं, मगर उसके नसीब में वही सरकार की सब्सिडी वाले अनाज हैं।
वह भी भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसा बेचारा किन-किन का पेट भरे।
स्थिति वहीं की वहीं, तब आजादी क्या हुई या हम युवा समझें कि आजादी मतलब सवालाख गोरे यहां से चले गए।
1947 में भी इंडिया शोषण, भ्रष्टाचार और गरीबी से कमजोर थी। आज की इंडिया भी इस बीमारी से पीड़ित है।
कल भी सरकार एवं समाज के बीच गहरी खाई थी, आज भी सरकार इंडिया की समाज से कोसों दूर है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)