Wednesday 12th of March 2025 07:11:54 PM
HomeBreaking Newsबर्फीली ऊंचाइयों में त्रासदी: उत्तराखंड हिमस्खलन ने ली 8 जानें, खोज अभियान...

बर्फीली ऊंचाइयों में त्रासदी: उत्तराखंड हिमस्खलन ने ली 8 जानें, खोज अभियान गमगीन अंत तक पहुंचा

देहरादून, 2 मार्च 2025:
उत्तराखंड के माणा गांव की ठहरी हुई शांति शुक्रवार को अचानक टूटी जब एक विनाशकारी हिमस्खलन ने 54 मजदूरों को पल भर में निगल लिया। देखते ही देखते बर्फ और बर्फीले मलबे की मोटी परतों के नीचे ज़िंदगियां दफन हो गईं। इसके बाद 53 घंटे तक राहत दलों ने जिंदगी और मौत की इस जंग में अपना सब कुछ झोंक दिया—कड़ाके की ठंड, खतरनाक इलाका, और किसी भी पल फिर से गिरने वाली बर्फ़ की मार झेलते हुए। लेकिन अंत में, 8 जिंदगियां हमेशा के लिए खो गईं।

रविवार को बचाव दलों ने आखिरी चार लापता मजदूरों के शव मलबे से निकाले। स्निफर डॉग्स, थर्मल इमेजिंग कैमरे और हेलीकॉप्टरों की मदद से बचाव कार्य तेज़ किया गया, लेकिन प्रकृति के क्रूर निर्णय को कोई नहीं बदल सका।

जिंदगी बचाने की जद्दोजहद, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी

यह विनाशकारी हिमस्खलन शुक्रवार को बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) के कैंप पर आया, जिसने आठ कंटेनरों और एक शेड को पूरी तरह दफन कर दिया। पहले यह माना गया था कि कुल 55 मजदूर फंसे हैं, लेकिन एक मजदूर अनधिकृत अवकाश पर था और सौभाग्य से बच गया।

46 मजदूरों को किसी तरह जिंदा बचा लिया गया। इनमें से 45 को ज्योतिर्मठ के आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया है, जबकि एक को रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट के चलते एम्स ऋषिकेश ले जाया गया। लेकिन 8 लोगों की किस्मत में मौत लिखी थी।

हिमस्खलन में जान गंवाने वालों की सूची

शनिवार को जिन चार मजदूरों के शव मिले:

  • जीतेन्द्र सिंह (26) – बिलासपुर, उत्तर प्रदेश
  • अलोक यादव – कानपुर, उत्तर प्रदेश
  • मंजीत यादव – सरवन, उत्तर प्रदेश
  • मोहिंदर पाल (42) – कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

रविवार को जिन चार मजदूरों के शव बरामद हुए:

  • हरमेश चंद (31) – ऊना, हिमाचल प्रदेश
  • अनिल (21) – रुद्रपुर, उत्तराखंड
  • अशोक (28) – फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
  • अरविंद – देहरादून, उत्तराखंड

हर नाम के पीछे एक अधूरी कहानी है—सपने, परिवार, और उजड़ती जिंदगियां।

मुख्यमंत्री ने की बचाव अभियान की समीक्षा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार बचाव अभियान की निगरानी कर रहे थे। उन्होंने ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR), थर्मल इमेजिंग कैमरा, और विक्टिम लोकेटिंग कैमरा की मदद से लापता मजदूरों को खोजने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा था,
“समय हाथ से निकल रहा है। सोमवार को मौसम फिर से बिगड़ सकता है, इसलिए हमें हर हाल में रविवार को लापता मजदूरों को ढूंढ निकालना होगा।”

लेकिन आठ परिवारों के लिए यह समय पहले ही खत्म हो चुका था।

धामी ने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं और भारतीय सेना, ITBP, NDRF, SDRF समेत सभी राहत टीमों की कड़ी मेहनत की सराहना की। लेकिन इन प्रयासों के बावजूद, आठ घरों में मातम पसर चुका था।

हिमालय की गोद में अनंत शांति, लेकिन अपनों के लिए अंतहीन दर्द

बचाव दलों ने जब राहत अभियान को समेटा, तो बर्फ से ढके बीआरओ कैंप में एक गहरी खामोशी छा गई। पहाड़ों ने अपनी कीमत वसूल ली थी, उन्हें इंसानी दर्द से कोई सरोकार नहीं था।

दूर किसी गांव में माएं बिलख रही हैं, पत्नियां बेसुध पड़ी हैं, बच्चे अनाथ हो गए हैं।
अब उनके घरों में न अपनों की आवाज़ गूंजेगी, न ही रोज़ी-रोटी कमाने गए उन मेहनतकश मजदूरों की वापसी होगी।

हिमालय सुंदर है, दिव्य है—लेकिन आज, यह एक कब्रगाह बन चुका है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments