खरसावां: आज शुक्रवार को खरसवां के श्रीगुंडीचा मंदिर एवं हरिभनजा स्थित श्रीगुंडीचा मंदिर मे हेरापंचमी नीति की रस्म सम्पन्न की गई। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब महाप्रभु रथ में सवार होकर मौसीवाडी श्री गुंडिचा मंदिर को बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ जाते हैं तो श्री मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ की अर्धांगिनी महालक्ष्मी अकेले रह जाती हैं। मंदिर में अकेली माता लक्ष्मी चार दिन तक महाप्रभु की प्रतीक्षा करती हैं। महाप्रभु के श्री मंदिर मे नहीं लौटने के कारण माता लक्ष्मी महाप्रभु से नाराज हो जाती है ओर क्रोधित एवं गुस्सा होकर पांचवें दिन श्री गुंडीचा मंदिर तक यात्रा करती है। मालूम हो की इस बार भी कोविड 19 को लेकर जारी अनूदेशों के अनुपालनार्थ रथ यात्रा का आयोजन नहीं किया गया। परंतु, उपरोक्त मान्यता के अनुसार शुक्रवार को देर शाम मे मंदिरों मे हेरापंचमी नीति की रस्म अदायगी की गई। इसके तहत ब्राह्मण कुमारों द्वारा माता लक्ष्मी को पालकी मे खरसवां राजमहल स्थित मंदिर से श्री गुंडीचा मंदिर तक लाया गया। जहां पांडा पुजारियों ने माता लक्ष्मी को भगवान जगन्नाथ से साक्षात करवाया। माता लक्ष्मी प्रभु जगन्नाथ से वापस अपने धाम श्री मंदिर चलने का आग्रह करती है भगवान जगन्नाथ उनके अनुरोध को स्वीकार तो करते हैं। साथ ही सहमति के रूप में एक माला महालक्ष्मी को देते हैं जिसे सहमति माला कहा जाता है। परंतु वापस नहीं जाते हैं। इससे महालक्ष्मी क्रोधित हो गई ओर अपने सेवक के द्वारा महाप्रभु के रथ नंदिघोष के एक हिस्से को क्षतिग्रस्त कर वापस अपने मंदिर मे चली गई। यह रस्म अदायगी के समय मंदिर मे पुजारियों द्वारा विशेष पूजा अर्चना की गई। हेरा पंचमी के इस महा रस्म अदायगी का क्षण मे महाप्रभु जगन्नाथ एवं महालक्ष्मी के महादर्शन के लिए भक्त आतुर रहते है। परंतु कोविड 19 के कारण इस बार यह रस्म बिना भक्तों के पूरी की गई, खरसवां राजघराने के राजा गोपाल नारायण सिंहदेव मंदिर के पुजारी सह सेवायत उपस्थित रहे।
श्री गुंडीचा मंदिर मे हेरापंचमी नीति हुई संपन्न, माता महालक्ष्मी के द्वारा तोड़ा गया प्रभु जगन्नाथ का नंदिघोष रथ
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