यूक्रेन युद्ध के बाद भारत द्वारा रूसी तेल आयात में भारी वृद्धि हुई, लेकिन इस आयात से होने वाले वास्तविक लाभ को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, रूस से सस्ते तेल के आयात से भारत को सालाना महज 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर का ही लाभ हुआ है, जो पहले बताए गए 10-25 अरब डॉलर के दावे से कहीं कम है।
ब्रोकरज फर्म CLSA ने गुरुवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर भारत रूसी तेल आयात बंद करता है तो वैश्विक क्रूड ऑयल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है, ने यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल खरीदना लगभग शून्य से बढ़ाकर कुल आयात का 40 प्रतिशत कर दिया।
रिपोर्ट के अनुसार, “रूसी कच्चे तेल पर औसतन प्रति बैरल 4 अमेरिकी डॉलर की छूट मानने पर कुल वार्षिक लाभ महज 2.5 अरब डॉलर होगा, जो भारत की GDP का केवल 0.6 बीपीसी है। मौजूदा समय में यह छूट घटकर लगभग 1.5 डॉलर प्रति बैरल रह गई है, जिससे भविष्य का वार्षिक लाभ सिर्फ 1 अरब डॉलर रह सकता है।”
भारत ने बार-बार कहा है कि उसका रूसी तेल आयात किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि रूसी कच्चे तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यूरोपीय संघ ने हाल ही में रूसी तेल से बने ईंधन पर बैन लगाया है, जबकि अमेरिका ने भी रूसी तेल पर सीधा प्रतिबंध नहीं लगाया है।
वर्तमान में, भारत अपने कुल 5.4 मिलियन बैरल प्रति दिन (एमबीपीडी) के आयात में से 36 प्रतिशत (1.8 एमबीपीडी) रूस से लाता है। अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं: इराक (20%), सऊदी अरब (14%), यूएई (9%) और अमेरिका (4%)।
CLSA ने यह भी कहा कि भारतीय आयातकों के लिए रूसी तेल से मिलने वाला वास्तविक लाभ दिखने वाली छूट से कहीं कम है, क्योंकि शिपिंग, बीमा और रीइंश्योरेंस जैसी पाबंदियों के चलते रूसी तेल को “कास्ट, इंश्योरेंस एंड फ्रेट (CIF)” आधार पर भारत पहुंचाया जाता है।
रिपोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर भारत रूसी तेल आयात बंद करता है, तो वैश्विक आपूर्ति में 1 प्रतिशत (लगभग 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन) की कमी आ सकती है, जिससे तेल की कीमतें 90-100 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं और वैश्विक महंगाई में उछाल आ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया, “आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारतीय आयात रूसी तेल की कीमत पर एक महत्वपूर्ण नियंत्रण बनाए रखते हैं और वैश्विक मुद्रास्फीति के जोखिम को कम करते हैं। लेकिन अब यह मसला आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक हो गया है। भारत बार-बार यह दोहरा रहा है कि वह वैश्विक व्यापार नियमों के दायरे में रहते हुए अपने व्यापारिक साझेदार चुनने के लिए स्वतंत्र है।”

