जेडीयू में आज एक अप्रत्याशित घटना हुई । नीतीश के खास सिपाहसलार सांसद ललन सिंह उपेंद्र कुशवाहा के घर पहुंच गये । जानकार बताते हैं कि कल ही उपेंद्र कुशवाहा ने ललन सिंह को फोन किया था । ललन सिंह ने खुद कहा था कि वे उपेंद्र कुशवाहा के घऱ आय़ेंगे । अपने जीवन में संभवतः पहली दफे ललन सिंह उपेंद्र कुशवाहा के घर गये होंगे । दिलचस्प बात ये भी है कि जब उपेंद्र कुशवाहा की जेडीयू में फिर से एंट्री हुई थी तो आरसीपी औऱ ललन सिंह दोनों साथ मिलकर उन्हें हाशिये पर रखने की कवायद में लगे थे ।
लेकिन वही ललन सिंह अब उपेंद्र कुशवाहा के घर पहुंच गये । दोनों का एक घंटे तक बंद कमरे में बातचीत करना बता रहा था कि जेडीयू के अंदर के समीकरण बदल गये हैं । चार दिन पहले तक ललन सिंह औऱ आरसीपी सिंह की जोड़ी हुआ करती थी । जिस दौर में ललन सिंह ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था उस दौर में भी वे आरसीपी सिंह के खिलाफ नहीं बोलते थे । अब जो मैसेज आ रहा है वो ये है कि ललन-आरसीपी की जोड़ी टूट चुकी है ।
दरअसल विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने जब जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ कर आऱसीपी सिंह को उस पर बिठाया था, तो प्रमुख मकसद एक ही था । आरसीपी सिंह बीजेपी नेताओं से ऑफिशियली बात करेंगे । विधानसभा चुनाव के बाद जब नीतीश की हैसियत घटी तो बीजेपी ने अपने मंझोले नेताओं को उनसे बात करने के लिए भेजना शुरू कर दिया था । नरेंद्र मोदी-अमित शाह को छोड़ बीजेपी के किसी दूसरे नेता को अपने बराबर नहीं समझने वाले नीतीश को भूपेंद्र यादव औऱ संजय जायसवाल से बात करना अपमानजनक लगता था । आऱसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर उन्हें बीजेपी से को-ओर्डिनेशन बनाने का जिम्मा सौंपा गया था ।
एक सप्ताह पहले आया था नीतीश को फोन
जेडीयू के सूत्र बताते हैं कि एक सप्ताह पहले नीतीश कुमार को बीजेपी के एक नेता ने कॉल किया था । उनसे पूछा गया कि किसे मंत्री बनाना चाहते हैं । नीतीश कुमार ने कह दिया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह बात कर लेंगे । मामला यही फंसा कि नीतीश कुमार को अमित शाह या प्रधानमंत्री के बजाय बीजेपी के मंझोले कद के नेता ने कॉल किया था । नाराज नीतीश ने कह दिया कि आरसीपी सिंह बात करेंगे ।
ऐसे हुआ खेल
जेडीयू सूत्र बताते हैं कि बीजेपी से मंत्री बनाने के लिए नाम बताने का कॉल आने के बाद नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह से बात की थी। उन्हें कहा गया था कि बीजेपी से जो भी बात हो उसमें सबसे पहले लोजपा को तोडने वाले पशुपति कुमार पारस को मंत्री बनाने की बात हो । इसके बाद जेडीयू अपने लिए तीन मंत्री की सीट मांगी जाये । इससे कम पर सहमत होने का सवाल ही नहीं है ।
जानकारों की मानें तो इसी फार्मूले के तहत जेडीयू ने तैयारी भी करनी शुरू कर दी थी । नीतीश कुमार ललन सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाना चाहते थे तो एक अति पिछड़ा और एक कुशवाहा सांसद को राज्यमंत्री । नीतीश की इसी सोंच के तहत संसदीय कमेटी के साथ बाहर दौरा पर गये जेडीयू के एक सांसद को आनन फानन में वापस दिल्ली बुलाया गया था । जिन्हें मंत्री बनना था उनके लिए आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट ले आ कर आना अनिवार्य कर दिया गया था । जेडीयू के दो सांसदों ने अपनी आऱटीपीसीआर जांच भी करा ली थी, लेकिन उन्हें न्योता ही नहीं आया ।
आरसीपी ने कर दिया खेल
जानकार बता रहे हैं कि बीजेपी से जब आरसीपी सिंह ने बात की तो बीजेपी जेडीयू को दो मंत्री पद देने को तैयार थी, एक कैबिनेट औऱ एक राज्य मंत्री. बीजेपी अपने कोटे से पशुपति कुमार पारस को मंत्री बनाने को तैयार नहीं थी. जेडीयू ने जब पारस को मंत्री बनाने की बात की तो बीजेपी ने कहा कि पारस के अलावा एक औऱ मंत्री पद दिया जा सकता है. आरसीपी सिंह ने झट से उस ऑफर को स्वीकार किया औऱ मंत्री पद के लिए अपना नाम बढ़ा दिया.
बीजेपी ने भी किया खेल
जानकार बता रहे हैं कि आरसीपी सिंह काफी पहले से बीजेपी के संपर्क में थे. ट्रिपल तलाक, धारा 370 से लेकर दूसरे तमाम विवादास्पद मामलों में वे बीजेपी के साथ थे. कृषि कानून पर जब जेडीयू ने स्टैंड लिया कि केंद्र सरकार को किसानों से बात करना चाहिये तो आरसीपी सिंह ने बीजेपी के पक्ष में खुला मोर्चा खोल दिया. आरसीपी सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को किसानों से बात करने की कोई जरूरत नहीं है. जेडीयू-बीजेपी के बीच असहमति के हर मसले पर आरसीपी सिंह जेडीयू के बजाय बीजेपी के प्रवक्ता बने नजर आय़े.
मंत्रिमंडल विस्तार के समय बीजेपी ने खेल किया. बीजेपी पहले जेडीयू को एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का पद देने को तैयार थी. जब आरसीपी सिंह ने खुद मंत्री बनने की इच्छा जाहिर की तो दो कैबिनेट मंत्री का पद देने पर बीजेपी तत्काल राजी हो गयी. पारस को जेडीयू कोटे में ही शामिल किया गया है. बीजेपी जेडीयू के भीतर के खेल को समझ रही थी. लिहाजा आरसीपी सिंह को शह देने में देर नहीं की.
परेशान नीतीश की बेबसी
आरसीपी सिंह के मंत्री बनने से नीतीश को सियासी नुकसान हुआ है. अपने गृह जिले के स्वजातीय व्यक्ति को केंद्र में मंत्री बना कर नीतीश को कोई राजनीतिक लाभ नहीं होने वाला. लेकिन आरसीपी सिंह के खेल को फिलहाल बर्दाश्त करने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा. तीन दशक से भी ज्यादा समय से नीतीश के साथ रहे आरसीपी उनके हर बात के राजदार हैं. जेडीयू की भी बात करें तो उसका भी पूरा सांगठनिक ढांचा आरसीपी सिंह का ही तैयार किया हुआ है. नीतीश आरसीपी सिंह पर कार्रवाई करेंगे तो वहां फंसेंगे. उपर से बीजेपी की नाराजगी का भी खतरा है. दोनों आफत एक साथ आय़ी तो बिहार में सरकार पर खतरा होगा. ऐसे में नीतीश चाह कर भी तत्काल आरसीपी सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते.
समय पर आरसीपी पर कार्रवाई
जानकार बता रहे हैं कि नीतीश पहले वह सब तैयारी कर लेना चाहते हैं जिससे आरसीपी के विद्रोह से कोई बड़ा नुकसान न हो. लिहाजा संगठन का काम जानने उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के सभी जिलों के दौरे पर भेजा गया है. नीतीश कुमार की निगरानी में सभी जिलों को आगाह किया गया है कि जब उपेंद्र कुशवाहा वहां जायें तो उनके स्वागत से लेकर उन्हें सारी जानकारी दी जाये.
सूत्र बता रहे हैं कि नीतीश कुमार अगले महीने जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक बुला सकते हैं. उसी बैठक में आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से मुक्त करने की कार्रवाई की जा सकती है. हालांकि खुद आरसीपी सिंह भी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहने को बहुत उत्सुक नहीं है.