भारत की सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में महिलाओं की भर्ती पर लगाए गए 50% कैप को खत्म कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि कोई भी देश सुरक्षित नहीं रह सकता जब उसकी आधी आबादी, यानी महिलाएं, पीछे रह जाएं। महिला उम्मीदवारों को केवल 50% सीटें देने की व्यवस्था संविधान की समानता के अधिकार के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह सेना की अपनी नीति पर व्यक्तिगत राय थोपने जैसा नहीं है, बल्कि संविधान और कानून के अनुसार फैसला लागू कर रहा है। अब JAG शाखा में भर्ती के लिए पुरुष और महिला दोनों उम्मीदवारों का एक संयुक्त मेरिट लिस्ट बनाया जाएगा, जिसमें केवल योग्यता को आधार माना जाएगा।
लेकिन सेना में महिलाओं की भर्ती को लेकर जो आम तर्क दिए जाते हैं, वे काफी हद तक निराधार और गलतफहमी पर आधारित हैं:
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“सेना में शारीरिक मेहनत ज्यादा होती है, इसलिए यह केवल पुरुषों के लिए उपयुक्त है” — यह बात सही है कि सेना में शारीरिक कठिनाइयां हैं, लेकिन JAG शाखा एक कानूनी सेवा शाखा है जहां लड़ाई नहीं बल्कि कानूनी सलाह और मामलों का संचालन मुख्य कार्य है। इसके लिए शारीरिक ताकत से ज्यादा मानसिक और कानूनी योग्यता जरूरी है।
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“सेना पुरुषों का क्षेत्र है क्योंकि वे युद्ध में लड़ते हैं” — यह सोच पुरानी और लैंगिक भेदभाव से भरी है। आधुनिक सेना में महिलाओं को भी विभिन्न तकनीकी, प्रशासनिक, और समर्थन भूमिकाओं में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। युद्ध केवल बंदूक चलाने तक सीमित नहीं है।
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“महिलाओं के लिए आरक्षण और कोटा सेना की कार्यक्षमता को नुकसान पहुंचाएगा” — सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह तर्क सही नहीं है। समान योग्यता पर आधारित चयन से सेना की कार्यक्षमता और दक्षता बढ़ेगी क्योंकि प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को प्राथमिकता मिलेगी, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं।
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“सेना का शरीर और मान सम्मान महिलाओं की भर्ती से प्रभावित होगा” — यह मानसिकता लिंग आधारित भेदभाव को दर्शाती है। महिलाओं का सम्मान सेना में बढ़ रहा है और वे अपनी प्रतिभा और काबिलियत से साबित कर रही हैं कि वे भी सेना के हर क्षेत्र में सक्षम हैं।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के प्रति समाज और विशेष रूप से सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। महिलाओं को सेना में शामिल करने से न केवल उनकी प्रतिभा का सही उपयोग होगा, बल्कि यह देश की सुरक्षा को भी मजबूत बनाएगा क्योंकि एक देश तभी सुरक्षित रह सकता है जब उसके सभी नागरिक बराबरी के अवसर पाएं।
पुरानी सोच और आधारहीन तर्कों को छोड़कर हमें एक समावेशी और सक्षम सेना का निर्माण करना होगा जो योग्यता और काबिलियत के आधार पर देश की सेवा करे, न कि लिंग के आधार पर।