नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक “रैसीना क्रॉनिकल्स” रैसीना संवाद के माध्यम से भारत के वैश्विक दृष्टिकोण और उसकी विविधता को दर्शाती है। यह पुस्तक यह स्थापित करती है कि भारत की नीति, शासन और कहानी कहने की शैली में खुलापन और समावेशिता ही इसकी सबसे बड़ी शक्ति है।
रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को एस. जयशंकर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के अध्यक्ष समीर सरन ने संपादित किया है। दोनों ही रैसीना डायलॉग के प्रमुख क्यूरेटर हैं। पुस्तक रैसीना डायलॉग के दस वर्षों की यात्रा और इसके वैश्विक प्रभावों को समेटती है—कैसे इसने विचार-विमर्श, नीति-निर्माण और वैश्विक सहयोग में भारत को अग्रणी भूमिका में स्थापित किया।
जयशंकर लिखते हैं कि रैसीना संवाद ऐसा मंच है जहाँ पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, सभी एक साथ आकर साझा मंच पर संवाद करते हैं। यहाँ नेताओं, राजनयिकों, उद्यमियों, पत्रकारों और छात्र-छात्राओं को एक साथ मंच साझा करते देखा जा सकता है। यह मंच धैर्य, समझ और संतुलन को प्राथमिकता देता है।
ग्रीस के प्रधानमंत्री कायरियाकोस मित्सोताकिस ने पुस्तक की भूमिका में लिखा कि आज का विश्व पश्चिम और पूर्व, उत्तर और दक्षिण के बीच बंट चुका है। ऐसे समय में भारत इन विभाजनों के बीच सेतु बनकर उभर रहा है। संवाद के माध्यम से इन विभाजनों को कम किया जा सकता है, और रैसीना डायलॉग इस संवाद के लिए आदर्श ‘अगोरा’ यानी जनमंच है।
उन्होंने कहा कि आज के समय में भौतिक और समुद्री संपर्कों को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता है। भारत और भूमध्य सागर के बीच ऐतिहासिक रूप से जो संपर्क रहे हैं, उन्हें दोबारा स्थापित किया जा सकता है, जिससे समूचे क्षेत्र को लाभ होगा।
यह पुस्तक न केवल एक दशक के संवाद का संकलन है बल्कि विश्व मामलों पर भारत की सोच और सक्रिय भूमिका का रिपोर्ट कार्ड भी है। इसमें दुनिया भर के नेताओं और विशेषज्ञों के मूल लेख, विचार और भाषण शामिल हैं जो वैश्विक नीति निर्माण में भारत के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं।