बाराबंकी (उत्तर प्रदेश):
उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला, जो कभी अफीम की खेती के लिए जाना जाता था, आज 15 वर्षीय रामकेवल के कारण चर्चा में है। उसने यूपी बोर्ड की कक्षा 10वीं की परीक्षा पास करके इतिहास रच दिया। यह इसलिए खास है क्योंकि निज़ामपुर गांव के 78 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि किसी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की हो।
रामकेवल ने भले ही सिर्फ 53 प्रतिशत अंक हासिल किए हों, लेकिन इन सेकंड डिवीजन नंबरों के पीछे की कहानी हर किसी की आंखें नम कर देती है।
🌾 गरीबी में जन्मा हौसला:
निज़ामपुर, बाराबंकी से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित एक पिछड़ा गांव है, जिसमें सिर्फ 25 दलित परिवार रहते हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी करके गुजारा करते हैं।
रामकेवल के पिता जगदीश रावत दिहाड़ी मजदूर हैं, और मां पुष्पा देवी एक सरकारी स्कूल में रसोइया का काम करती हैं। परिवार में दो छोटे भाई, एक छोटी बहन और एक बड़ी बहन (जो शादीशुदा हैं) हैं।
शैक्षणिक खर्च उठाने के लिए रामकेवल खुद भी शादी-समारोहों में लाइट उठाने और मजदूरी का काम करता था। वह दिन भर काम करने के बाद भी रोज़ 1–2 घंटे पढ़ाई करता, और जो नहीं समझ आता, उसे अगले दिन स्कूल में अपने अध्यापकों से पूछता।
🏫 बिना जूते पैदल स्कूल:
रामकेवल ने गांव के प्राइमरी स्कूल में कक्षा 5 तक पढ़ाई की, फिर पास के गांव में 6वीं से 8वीं कक्षा पूरी की। 9वीं में अहमदपुर गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में दाखिला लिया, जो उनके घर से सिर्फ 500 मीटर दूर था, लेकिन पैसे न होने के कारण वह रोज़ नंगे पांव स्कूल जाता।
बिजली का कनेक्शन नहीं होने के कारण वह सरकार द्वारा लगाए गए सोलर स्ट्रीटलाइट के नीचे पढ़ाई करता था। खाने और कपड़ों का इंतजाम भी मुश्किल होता था।
👞 पहली बार जूते पहने:
जब परीक्षा परिणाम आया और रामकेवल पास हुआ, तो जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने उन्हें सम्मान समारोह में बुलाया। उनके स्कूल प्रिंसिपल वीके गुप्ता ने उन्हें पहली बार शर्ट, पैंट और जूते दिलवाए। उन्होंने कहा —
“ये मेरे जीवन का सबसे यादगार पल था, जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।”
💸 खुद कमाकर पढ़ाई की:
शादी-समारोह में लाइट उठाने का काम कर वह प्रत्येक बार 200–300 रुपये कमाता था, जिससे उसने ₹2100 की स्कूल फीस, किताबें और कॉपियां खरीदीं, और जो बचा, वह घर में दे देता।
उनके पिता कभी स्कूल नहीं गए, और मां सिर्फ कक्षा 5 तक पढ़ी थीं।
“घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था, इसलिए शुरुआत में पढ़ाई बहुत मुश्किल लगी।”
🥇 उद्देश्य बना UPSC पास करना:
जब उन्होंने जाना कि गांव में कोई कभी 10वीं पास नहीं हुआ, तो उन्होंने इसे मिशन बना लिया। कुछ लोगों ने मजाक उड़ाया, कहा,
“पढ़ाई कर के क्या करेगा?”
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
अब उनका सपना है कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करके IAS अधिकारी बनें, ताकि अपने गांव और समाज के विकास में योगदान दे सकें।
🔦 नई पीढ़ी को नई रोशनी:
रामकेवल से पहले, निज़ामपुर में सबसे अधिक पढ़ाई किसी ने 8वीं तक की थी। गांव में लगभग 150 लोग हैं, लेकिन ज़्यादातर अनपढ़ हैं। वहां एक प्राइमरी स्कूल है, पर आर्थिक मजबूरियों के कारण ज़्यादातर लोग पढ़ाई अधूरी छोड़ देते हैं।
लेकिन रामकेवल की सफलता ने गांव में उम्मीद की नई किरण जगाई है — अब शिक्षा एक सपना नहीं, हकीकत बनती दिख रही है।