Monday 15th of September 2025 09:15:22 AM
HomeBreaking Newsराज्यसभा सांसद ने कक्षा एक की पुस्तक से द्विअर्थी शब्दों वाली कविता...

राज्यसभा सांसद ने कक्षा एक की पुस्तक से द्विअर्थी शब्दों वाली कविता हटाने की मांग की

रांची : सांसद (राज्यसभा) श्री महेश पोद्दार ने एनसीईआरटी के सिलेबस पर आधारित कक्षा एक की हिंदी पुस्तक रिमझिम में शामिल “आम की टोकरी” शीर्षक कविता के कुछ द्विअर्थी शब्दों और घटिया तुकबंदी पर आपत्ति जताते हुए इसे सिलेबस से हटाने की मांग की है। श्री पोद्दार ने इस आशय का एक पत्र एनसीईआरटी के निदेशक को लिखा है।

राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने NCERT को लिखा पत्र
राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने NCERT को लिखा पत्र

अपने पत्र में श्री पोद्दार ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व एवं भारत सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निःशंक के कुशल मार्गदर्शन में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने कई ऐतिहासिक भूलें सुधारी हैं और समृद्ध भारतीय इतिहास-परंपरा का पाठ्यक्रम में समावेश किया गया है ।

मेरा मानना है कि स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम निर्धारण और इसकी संतुलित बुनावट के लिए जहां देश के इतिहास, संस्कृति, परंपरा, भूगोल आदि का ध्यान रखा जाना आवश्यक है वहीं जनभावना और पाठ्यक्रम के बालमन पर संभावित प्रभाव के प्रति सतर्कता बरतना भी जरूरी होता है ।

विगत कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुरूप कक्षा एक में पढ़ाई जा रही हिन्दी की पुस्तक रिमझिम की ‘आम की टोकरी’ शीर्षक कविता के संबंध में अत्यधिक आपत्ति जतानेवाली टिप्पणियां की जा रही हैं| रिमझिम नाम की इस किताब में शामिल यह कविता रामकृष्ण शर्मा खद्दर द्वारा रचित है| सोशल मीडिया पर एक बड़ा समूह इस कविता को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग कर रहा है| उनकी शिकायत है कि उक्त कविता के कई शब्द द्विअर्थी हैं जिससे देश के एक बड़े जनसमूह की भावनायें आहत होती हैं, नारी गरिमा पर आघात होता है और बालमन पर इसके कुप्रभाव की आशंका है|
सांसद श्री पोद्दार ने अपने पत्र में कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के लिंक भी साझा किये हैं, जिनमें इस कविता पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई गई है।

उन्होंने कहा कि इस कविता को लेकर एनसीईआरटी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 के अनुसार इस कविता का उद्देश्य स्थानीय भाषाओं की शब्दावली को बच्चों तक पहुंचाना है, ताकि बच्चों को सीखना रुचिकर लगे| मेरा और देश के एक बड़े जनसमूह का मानना है कि स्थानीय शब्दावली को रुचिकर ढंग से बच्चों तक पहुंचाने के कई अन्य सरल विकल्प उपलब्ध हैं और यदि देश के एक बड़े जनसमूह को किसी पाठ्य सामग्री पर आपत्ति हो तो उसे पाठ्यक्रम से बाहर किया जाना ही श्रेयस्कर है|

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments

wpChatIcon
wpChatIcon