पुलवामा जैसा हमला फिर दोहराया, 1000 से ज्यादा भारतीयों ने पाकिस्तान छोड़ा, लेकिन सवाल कायम: जब पाकिस्तान भारत से नफरत करता है, तो इनके लोग यहां क्यों आते हैं?
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पाकिस्तान में पंजीकृत 1000 से अधिक भारतीय नागरिकों ने पिछले छह दिनों में वाघा बॉर्डर के जरिए भारत लौटना शुरू कर दिया है। यह कदम तब उठाया गया जब पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए। इसी दौरान पाकिस्तान ने भी भारतीयों के लिए SAARC वीजा छूट योजना रद्द कर दी।
हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली, जो पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक मुखौटा है। एक बार फिर साबित हो गया कि पाकिस्तान की जमीन पर पल रहे आतंकी भारत में खून-खराबा फैलाने के इरादे से प्रशिक्षित और सक्रिय हैं।
भारत सरकार ने तत्परता दिखाते हुए वाघा-अटारी बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद किया और पाकिस्तानी नागरिकों के सभी वीजा रद्द कर दिए। मेडिकल वीजा को भी सीमित समय के लिए ही वैध रखा गया है। भारत में पाकिस्तानी नागरिकों की एंट्री अब लगभग पूरी तरह बंद कर दी गई है।
लेकिन बड़ा सवाल यही है: जब पाकिस्तान का हर स्तर पर भारत के प्रति घृणा स्पष्ट है, जब वहाँ के बच्चे तक भारत और भारतीयों को दुश्मन समझते हुए बड़े होते हैं, तो फिर इन जिहादी सोच वाले पाकिस्तानियों को भारत आने की अनुमति क्यों दी जाती रही? क्या यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं था?
पाकिस्तान में पलने वाली नफरत की संस्कृति से कोई भी पाकिस्तानी अछूता नहीं है। वहाँ आतंकवाद, कट्टरता और भारत विरोध की मानसिकता बच्चों तक में भरी जाती है। ऐसे माहौल में पले-बढ़े लोगों से दोस्ती की उम्मीद करना खुद को धोखा देने जैसा है।
भारत को अब एक सख्त नीति अपनानी चाहिए: जो राष्ट्र भारत से नफरत करता है, उसके नागरिकों के लिए हमारी सीमाएं हमेशा के लिए बंद होनी चाहिए। कोई वीजा, कोई सहूलियत नहीं। जो देश आतंक का समर्थन करता है, उसे मित्रता नहीं, कठोर अलगाव मिलना चाहिए।
यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुरक्षा दोनों का सवाल है। अब कोई नरमी नहीं, कोई भ्रम नहीं।