
पिछले कुछ दिनों से चल रहे कयासों को विराम लगाते हुए कांग्रेस ने जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार की इंट्री की तारीख तय कर दी है । कांग्रेस सूत्रों की मानें तो 28 सितम्बर को राहुल गांधी की उपस्थिति में नई दिल्ली में जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार कांग्रेस की सदस्यता लेंगे। इस मौके पर गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हार्दिक पटेल भी मौजूद रहेंगे।
हार्दिक पटेल ने निभाई मुख्य भूमिका
कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी की कांग्रेस में इंट्री के सूत्रधार हार्दिक पटेल रहे । ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी, सुष्मिता देव सिंह जैसे युवा नेताओं के कांग्रेस छोड़ने के बाद हार्दिक पटेल ने पार्टी आलाकमान को समझाया कि वंशवाद की बेल से उपजे राजकुमारों की जगह संघर्षशील और अपने दम पर बढ़ने का जज्बा रखने वाले युवाओं को जगह देने से पार्टी को अधिक फायदा होगा।
गुजरात, यूपी, बिहार और पंजाब पर नजर
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ही कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने की बात चली थी, लेकिन तेजस्वी यादव के विरोध के कारण कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा था। दूसरा कारण यह भी था कि कन्हैया कुमार बिहार कांग्रेस में अपने लिए बड़ी भूमिका की मांग कर रहे थे। फिलहाल बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें आ रही हैं।

दूसरा, पूर्वांचल के इलाकों में कांग्रेस कन्हैया कुमार से प्रचार करवाना चाहती है । कन्हैया कुमार खुद भूमिहार हैं और वे मोदी-शाह की कॉर्पोरेट परस्ती के खिलाफ दलितों और मुसलमानों एकजुट करने की कोशिश करेंगे ।
लेफ्ट-लिबरल पॉलिसी के साथ आगे बढ़ेगी कांग्रेस
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपना सुधारवादी चोला उतारकर लेफ्ट-लिबरल पॉलिसी के साथ आगे बढ़ने की रणनीति पर काम कर रही है। अंबानी-अडाणी और मोदी-शाह के खिलाफ़ आक्रामक रुख पार्टी का मुख्य हथियार होगा । इसके अलावा बेरोजगारी, अल्पसंख्यकों पर हमले, महंगाई, किसानों के प्रति मोदी सरकार की बेरुखी आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनपर कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आक्रमक रहेगी । इसके अलावा जिग्नेश मेवानी को दलित चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट किया जाएगा।
भाजपा के पिछड़े- सवर्ण के जवाब में कांग्रेस का दलित-अल्पसंख्यक-सवर्ण
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा आक्रमक तरीके से ओबीसी और अति- पिछड़े वोट-बैंक को रिझाने की कोशिश कर रही है। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के कारण सवर्ण वोटरों का एक बड़ा हिस्सा पार्टी के साथ है । इसके जवाब में कांग्रेस दलित-मुस्लिम-सवर्ण कंबिनेशन आजमाने की कोशिश में है । पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना इसी रणनीति का हिस्सा है। झारखंड में राजेश ठाकुर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस पहले ही सवर्ण कार्ड खेल चुकी है, अगर बिहार में भी कन्हैया कुमार को बड़ भूमिका मिलती है तो भाजपा के पारंपरिक वोटों में सेंधमारी आसान हो जाएगी।