मुंबई: मालेगांव विस्फोट मामले में बरी की गईं पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शनिवार को सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि पूछताछ के दौरान अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोगों के नाम लेने के लिए मजबूर किया गया।
प्रज्ञा ठाकुर ने सेशंस कोर्ट में अपनी ज़मानत संबंधी औपचारिकताओं को पूरा करते हुए मीडिया से बातचीत की। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें पूछताछ के दौरान टॉर्चर किया गया।
उन्होंने कहा, “उन्होंने (जांच अधिकारी) मुझसे कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लूं, क्योंकि उस समय मैं सूरत (गुजरात) में रह रही थी। कई नाम थे जैसे कि भागवत (संभावित रूप से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत), लेकिन मैंने किसी का नाम नहीं लिया क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलना चाहती थी।”
ठाकुर ने दावा किया कि उन्होंने यह सब लिखित रूप में भी दिया था। उन्होंने आगे कहा, “उनका उद्देश्य मुझे प्रताड़ित करना था। उन्होंने कहा कि अगर मैंने नाम नहीं लिए, तो वे मुझे टॉर्चर करेंगे। जिन नामों का ज़िक्र किया गया, उनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुधर्शन जी, इंद्रेश जी, राम माधव जी और कई अन्य शामिल हैं।”
पूर्व सांसद ने यह भी दावा किया कि जब वह अस्पताल में भर्ती थीं और बेहोश हो गई थीं, तब भी उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था।
“मैं अपनी कहानी लिख रही हूं जिसमें यह सब सच सामने आएगा। यह धर्म की जीत है, सनातन धर्म की जीत है, हिंदुत्व की जीत है…यह सनातनी राष्ट्र है और यह हमेशा विजयी रहता है,” उन्होंने कहा।
हालांकि, कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि प्रज्ञा ठाकुर द्वारा लगाए गए टॉर्चर और बदसलूकी के आरोपों का कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके अवैध हिरासत और टॉर्चर के दावों को खारिज कर दिया था।
विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने अपने फैसले में कहा, “मेरे सामने ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि उनके साथ दुर्व्यवहार या प्रताड़ना हुई थी, इसलिए मैं इस दावे को स्वीकार नहीं करता।”
प्रज्ञा ठाकुर ने उस समय के एटीएस अधिकारी परमबीर सिंह, हेमंत करकरे और सुखविंदर सिंह पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने उन्हें “दुष्ट व्यक्ति” करार देते हुए कहा कि उन्होंने झूठ बोलने का दबाव बनाया।
बता दें कि 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। अदालत ने 31 जुलाई को इस केस में प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और पांच अन्य को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि अभियोजन पक्ष इस मामले में ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य पेश नहीं कर सका।