नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल क़िले से संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सराहना करते हुए इसे “दुनिया का सबसे बड़ा NGO” और एक सदी की राष्ट्रीय सेवा की यात्रा बताया।
इस भाषण ने विपक्ष में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की। विपक्षी नेताओं ने मोदी पर भारत के धर्मनिरपेक्ष और संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने का आरोप लगाया।
मोदी का संदेश:
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मोदी ने कहा कि राष्ट्र केवल सरकार या सत्ता में बैठे लोगों से नहीं बनता, बल्कि संतों, ऋषियों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, किसानों, सैनिकों और संगठनों के प्रयासों से बनता है।
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उन्होंने RSS के 100 वर्षों के योगदान की सराहना की और सभी स्वयंसेवकों को राष्ट्र सेवा में उनके समर्पण के लिए बधाई दी।
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उन्होंने ‘व्यक्ति निर्माण’ और ‘राष्ट्र निर्माण’ के महत्व पर जोर दिया और इसे मातृभूमि के कल्याण के लिए आवश्यक बताया।
विपक्ष की प्रतिक्रिया:
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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे “अत्यंत परेशान करने वाला” बताया और कहा कि यह संविधान और धर्मनिरपेक्षता की भावना का उल्लंघन है।
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी RSS पर निशाना साधते हुए इसे ब्रिटिश औपनिवेशिक रणनीतियों से जोड़ा, जो भारत को विभाजित करने की दिशा में थीं।
BJP का रुख:
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BJP के IT विभाग प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सार्वजनिक बहस में RSS का योगदान महत्वपूर्ण है, और मोदी का उल्लेख उचित था।
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उन्होंने याद दिलाया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में RSS को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किया था और इसे देशभक्त संगठन कहा था।
सारांश:
प्रधानमंत्री की यह सराहना राजनीतिक वाद-विवाद का केंद्र बन गई है। BJP इसे देशभक्ति और संगठन के योगदान की मान्यता बता रहा है, जबकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ कदम मान रहे हैं।