राजनेता वह नहीं जो सिर्फ जनता के वोट से जीतकर विधायक या सांसद बनें, असली खेल तो इसके बाद शुरु होता है….और असली राजनेता भी वही है जो चुनाव के बाद “शह और मात का चक्रव्यूह” को अभिमन्यू की तरह तोड़कर बाहर निकले….चिराग पासवान यहीं मात खा गये….अपने पिता रामविलास पासवान से उन्होने शायद कुछ भी नहीं सीखा…रामविलास पासवान मौसम वैज्ञानिक थे…वे पहली मारने में कभी नहीं झिझके…शायद इसलिए हर सरकार में मंत्री रहे…दूसरी ओर चिराग ने दिल से राजनीति की और खुद को मोदी का हनुमान बना दिया…लेकिन वे शायद भूल गये कि ऐसा “कोई सगा नहीं, जिसे नीतीश ने ठगा नहीं”

तेजस्वी के साथ जाने में झिझक क्यों रहे हैं….
चिराग को समझना होगा कि वे एनडीए से खुद नहीं निकले, बल्कि उन्हे साजिश के तहत निकाला गया है…बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होने नीतीश कुमार के खिलाफ जो स्टैंड लिया था, उसी वक्त उनकी तरदीर का फैसला हो गया था…जिस भाजपा की बदौलत वे कूद रहे थे, उसने तो बुरे दिनों में चिराग को याद तक नहीं किया…इसे भाजपा का धोखा नहीं, बल्कि रणनीतिक समझदारी कहेंगे…लेकिन चिराग अब भी तेजस्वी या महागठबंधन के साथ जाने से हिचक रहे हैं…दरअसल चिराग खुद को तेजस्वी के समान ही युवा नेता मानते हैं…उनकी पार्टी का पासवान समाज भले ही तेदस्वी के यादव समाज से संख्या बल में कम हो, लेकि चिराग खुद को तेजस्वी यादव से ज्यादा प्रतिभावान मान बैठे हैं…यही इगो उन्हे तेजस्वी का नेतृत्व कबूलने से रोक रहा है…
चिराग के लिए आगे रास्ता क्या है ?
स्वर्गीय रामविलास पासवान का कैडर अब भी चिराग के साथ प्रतिबद्धता के साथ जुड़ा हआ है…पार्टी छोड़कर जानेवाले सिर्फ नेता हैं, आम कार्यकर्ता अब भी चिराग पासवान को ही अपना नेता मानता है। लेकिन चिराग पासवान को यहां से दिल से नहीं बल्कि जमीनी वस्तुस्थिति को समझते हुए राजनीति करनी होगी….जरुरत के हिसाब से दोस्त और दुश्मन बदलते रहना होगा….