इस्लामाबाद: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सोमवार को ईरान की राजधानी तेहरान में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भारत के साथ कश्मीर, आतंकवाद, जल और व्यापार सहित सभी लंबित मुद्दों पर शांति वार्ता की इच्छा जताई।
शरीफ ईरान की चार-देशीय यात्रा के दूसरे चरण में पहुंचे, जहां उनका सआदाबाद पैलेस में ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने स्वागत किया और उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई।
शरीफ ने कहा:
“हम भारत से सभी विवादों को हल करना चाहते हैं — चाहे वह कश्मीर हो, जल बंटवारा हो, आतंकवाद हो या व्यापार। यदि भारत शांति चाहता है, तो हम ईमानदारी से और गंभीरता से बातचीत के लिए तैयार हैं।”
हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि भारत युद्ध का रास्ता चुनता है, तो पाकिस्तान भी जवाब देगा। “यदि उन्होंने आक्रामक रवैया अपनाया, तो हम अपनी धरती की रक्षा करेंगे — जैसे कुछ दिन पहले किया,” शरीफ ने कहा।
पृष्ठभूमि: हालिया तनाव और सैन्य कार्रवाई
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22 अप्रैल को पहल्गाम आतंकवादी हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए।
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पाकिस्तान ने 8, 9 और 10 मई को भारतीय सैन्य ठिकानों पर जवाबी हमला करने की कोशिश की, जिसका भारत ने कड़ा जवाब दिया।
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10 मई को दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (DGMO) के बीच बातचीत के बाद सैन्य गतिविधियों को रोकने पर सहमति बनी।
ईरान के साथ संबंधों पर जोर
शरीफ ने ईरानी राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और हर क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई। उन्होंने ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची की पाकिस्तान यात्रा की भी सराहना की, जिन्होंने सैन्य तनाव के समय पाकिस्तान का समर्थन किया।
भारत का रुख
भारत का स्पष्ट रुख है कि वह पाकिस्तान से केवल आतंकवाद और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर पर ही बात करेगा। भारत लगातार यह दोहराता रहा है कि आतंकवाद से पहले कोई सार्थक संवाद संभव नहीं है।
निष्कर्ष
हालांकि पाकिस्तान ने शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया है, लेकिन भारत की ओर से बार-बार यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक सीमापार आतंकवाद बंद नहीं होता, कोई भी बातचीत संभव नहीं है। वर्तमान घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि कूटनीतिक बातचीत की पेशकश और जमीन पर की गई कार्रवाइयों के बीच विश्वास की गहरी कमी बनी हुई है।