रांची । संताल परगना स्थित गोपीकांदर प्रखंड की पहाड़ियों पर निवास करने वाले पहाड़िया जनजाति के दिन बहुर रहे हैं। राज्य सरकार पहाड़िया जनजाति के दरवाजे पर विकास की दस्तक दे रही है। उनके घरों को रोशन कर गांव तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा रहा है।

गांवों की हुई मैपिंग
पहाड़िया झारखण्ड में लुप्तप्राय जनजातियों के वर्ग में आते हैं। संतालपरगना के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। इन तक मूलभुत सुविधाएं पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। सरकार के निर्देश पर पहाड़ियों पर स्थित उनके गांवों की मैपिंग की गई। पेयजलापूर्ति के लिये कई गांवों में सौर ऊर्जा संचालित जल आपूर्ति प्रणाली स्थापित की गई है।
दुर्गम गांवों में सौर ऊर्जा से बिजली पहुंचाने की कवायद
अधिकतर गांवों को रोशन करने के बाद दुर्गम पहाड़ी इलाका होने से कुछ गांवों तक बिजली नहीं पहुंची है। इसमें दो-तीन घरों के कुछ टोले दूर-दूर पहाड़ पर आबाद हैं, जहां राज्य सरकार अब सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर रही है। साथ ही हर घर में एक बल्ब, एक चार्जिंग प्वाइंट और उनके घरों में एक पंखा प्रदान किया जाएगा। प्रति गांव चार स्ट्रीट लाइट्स भी दी जायेंगी।

स्वास्थ्य को लेकर भी सरकार चिंतित
राज्य सरकार निकट भविष्य में पहाड़िया जनजाति को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने की कार्ययोजना पर कार्य कर रही है। उन लोगों के लिए दो मोबाइल चिकित्सा वैन दिए जाएंगे, ताकि घर पर चिकित्सा सुविधा प्रदान की जा सके।
आजीविका का भी ध्यान
पहाड़िया जनजाति की आजीविका के मुख्य स्रोत वनोपज, खेती और दैनिक मजदूरी है। इस जनजाति की कई महिलाएं पत्तल बनाने का काम करती हैं। इस क्षेत्र में वनोपज के रूप में खजूर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। पहाड़िया इन खुजूर को बेचते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और बाजार की जानकारी के अभाव में बिचौलिए हावी रहे हैं। इससे पहाड़िया जनजाति के लोगों को उचित कीमत नहीं मिल पाती थी। अब राज्य सरकार इन्हें झारखण्ड राज्य आजीविका मिशन की योजनाओं से जोड़ रही है, ताकि इनके आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त हो सके। उन्हें बांस शिल्प निर्माण कार्य में प्रशिक्षित करने की भी योजना है।
