जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोदी कैबिनेट में शामिल होने वाले जेडीयू कोटे से इकलौते मंत्री हैं। अब तक के जिन नामों की चर्चा हो रही थी, उन्हें निराशा के अलावा और कुछ भी नहीं मिला है । ललन सिंह, चंद्रेश्वर चंद्रवंशी, संतोष कुशवाहा, रामनाथ ठाकुर, दिलेश्वर कामत समेत कई ऐसे नाम, जो मिनिस्टर इन वेटिंग के तौर पर चल रहे थे । अब वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. लेकिन केंद्रीय कैबिनेट विस्तार से इधर सबसे बड़ा धोखा उपेंद्र कुशवाहा के साथ हुआ है ।
कुशवाहा के साथ गेम हो गया…
उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया था. तब कुशवाहा का दोनों बाहें फैलाकर स्वागत करने वाले नीतीश कुमार ने खुले मंच से ऐलान किया था कि उपेंद्र कुशवाहा इसी वक्त से पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष होंगे. जनता दल यूनाइटेड का संविधान कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनने की इजाजत नहीं देता है. पार्टी के संविधान की धारा 28 में इस बात का जिक्र है कि पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष कौन हो सकता है. जेडीयू का संविधान बताता है कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही संसदीय बोर्ड का चेयरमैन होगा. इस लिहाज से अगर पार्टी के अध्यक्ष आरसीपी सिंह है तो कुशवाहा संसदीय बोर्ड के चेयरमैन नहीं हो सकते.
नीतीश को सब पता था…
जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार जब कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर रहे थे. उसके पहले उन्हें जेडीयू के संविधान की जानकारी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने दी थी. तब नीतीश कुमार ने यह कहा था कि यह सब बाद में देख लेंगे. यानी कुशवाहा को खबर भी नहीं लगी कि नीतीश कुमार ने उन्हें किस तरह का झूठा लॉलीपॉप दिया है. अगर कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाना था और आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर रहने देना था. तो इसके लिए पार्टी के संविधान में बदलाव जरूरी था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
उपेन्द्र कुशवाहा सदमे में हैं…
हद तो यह है कि कुशवाहा पिछले कई महीनों से संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं और पार्टी के ज्यादातर नेताओं को इसकी जानकारी तक नहीं. कुछ सीनियर लीडर्स को छोड़ दें तो सभी यही समझ रहे हैं कि कुशवाहा पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं और आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष. जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष ही संसदीय बोर्ड का चेयरमैन हो सकता है.