नई दिल्ली:
26/11 मुंबई आतंकी हमलों की भयावह रात, जब पूरा देश कांप उठा था, वहीं एक योद्धा अपने प्राणों की आहुति देकर सैकड़ों निर्दोषों की जान बचा गया—मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, एनएसजी कमांडो, भारत माता का वीर सपूत।
आज जब 26/11 के मास्टरमाइंड तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया है, मेजर संदीप के पिता, के. उन्नीकृष्णन ने वो शब्द कहे जो हर भारतीय के दिल को गर्व और आंसुओं से भर देंगे—
“मेरा बेटा पीड़ित नहीं था, वह अपना कर्तव्य निभा रहा था। वह जनता के हाथ थे।”
उन्होंने कहा, “अगर वो मुंबई में नहीं होता, तो किसी और जगह यही करता। देश की रक्षा उसका धर्म था, और उसने वही निभाया।”
उनके शब्द सिर्फ पिता का गर्जन नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की भावना हैं—कि हम अपने वीरों को कभी नहीं भूलेंगे।
उन्होंने राणा की गिरफ्तारी को “केवल एक कड़ी” कहा, लेकिन इसे भारत की एक बड़ी राजनयिक सफलता भी बताया।
“231 कॉल्स, सारे सबूत यहीं हैं। राणा कोई मामूली आदमी नहीं है, उसने योजनाएं बनाईं और क्रियान्वयन में भी भूमिका निभाई,” उन्होंने कहा।
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने ताज होटल में आतंकियों से लोहा लेते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए, उन्हें 26 जनवरी 2009 को अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। वह उस वक्त एनएसजी कमांडो दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे जब उन्हें गोलियां लगीं। आखिरी शब्द थे—
“Don’t come up, I’ll handle them.”
26/11 का हमला, केवल आतंक नहीं था, बल्कि भारत की आत्मा पर किया गया एक घिनौना प्रहार था। आज जब उस हमले के प्रमुख साजिशकर्ता को भारत की धरती पर लाया गया है, ये न्याय की ओर एक बड़ा कदम है। मगर असली न्याय तब होगा जब हर दोषी बेनकाब होकर सजा पाए।