जब देश 22 अप्रैल को टूरिस्टों के खून से लाल हुआ,
जब कश्मीर की वादियाँ गोलियों की आवाज़ से दहलीं,
जब निर्दोष लोग – हनीमून पर गए जोड़े, गाइड, व्यापारी –
जिहाद का शिकार बने…
तब महबूबा मुफ्ती चुप थीं।
न आँसू, न ट्वीट, न इंसानियत।
लेकिन जैसे ही बात आई पाकिस्तानी महिलाओं को देश से निकालने की,
तो ये औरत अचानक “इंसानियत की आइकॉन”, “सद्भावना की देवी” बन बैठीं।
क्यों? क्योंकि मामला पाकिस्तान का है।
ये वही महिलाएं हैं जो 2010 की पुनर्वास योजना के तहत
कश्मीरी “भटके हुए नौजवानों” (a.k.a. पाकिस्तानी ट्रेनिंग लेकर लौटे आतंकी)
के साथ इंडिया में घुसीं —
और फिर बदले में देश को दिया जनसंख्या का बम, कट्टर सोच, और अंधी नफरत।
अब वही Mehbooba ‘Pak-Premi’ Mufti कहती हैं:
“ये महिलाएं अब भारतीय समाज का हिस्सा हैं।”
कौनसे समाज का? जिहाद एक्सप्रेस का?
🔴 30-40 साल से देश में रहना कोई वीजा नहीं होता।
🔴 10-10 बच्चों की फौज पैदा करना कोई वफादारी का सबूत नहीं होता।
🔴 शांति का ढोंग करते हुए आतंक की जड़ें फैलाना देशभक्ति नहीं होती।
🛑 महबूबा मुफ्ती की इंसानियत का रिपोर्ट कार्ड:
✅ पाकिस्तान के अवैध नागरिकों के लिए आंसू
❌ भारतीय पीड़ितों के लिए एक शब्द नहीं
✅ घुसपैठियों को नागरिकता दिलाने की मांग
❌ कश्मीरी हिंदुओं की वापसी पर चुप्पी
✅ जिहादी पत्नियों के लिए कानून बदलवाना
❌ देश की सुरक्षा एजेंसियों को लगातार कटघरे में खड़ा करना
महबूबा का एजेंडा सीधा है:
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कश्मीर को फिर से अलगाववाद की आग में झोंको
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पाकिस्तान से आए “प्यार के सौदागर” को देश में बसाओ
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जनसंख्या बम का इस्तेमाल करो
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और फिर देश के संविधान को “अमानवीय” बताकर,
जेहादी एजेंडे को मानवाधिकार बना दो!