रांची । विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में सात दिवसीय ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का 15 अगस्त को समापन सत्र आयोजित किया गया । समापन सत्र में मुख्य वक्ता पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि आदिवासियों की जीवन शैली हीं हमारा सनातन धर्म है, और जिन्हें हम पिछड़ा समझते हैं उनके मूल्य श्रेष्ठ हैं ।
अशोक भगत ने कहा कि हमें उनसे सामाजिक सौहार्द, आपसी सहयोग, पारस्परिक विश्वास और स्वावलंबन जैसी मूल्यवान चीजे खीखनी चाहिए । आदिवासी समाज का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं किया और वे हमेशा आंदोलन करते रहे । फूलो-झानो, सिद्धो कान्हु और बिरसा मुण्डा जैसे लोगों की आजादी की लड़ाई में भूमिका अतुलनीय रही है । गांधीजी के आगमन के पहले ही सन 1914-16 में आदिवासियों ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया था । उन्होने बताया कि हजारीबाग से लातेहार तक चले इस आंदोलन में जो भी शामिल हुआ वह टाना भगत कहलाया । आदिवासी समाज के ज्ञान और चिंतन परम्परा को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कोरोना काल में वही जड़ी-बूटियां काम आ रही हैं जिन्हें आदिवासी समाज ने बचाकर रखा ।