पटना में 31 साल बाद आयोजित हुई कुर्मी एकता रैली बिहार में कुर्मी समाज की राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन थी। यह रैली बीजेपी विधायक कृष्ण कुमार मंटू पटेल के नेतृत्व में आयोजित की गई थी, जिसमें जेडीयू के कई नेता भी शामिल हुए। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके बेटे निशांत कुमार की गैरमौजूदगी से जेडीयू के नेताओं और समर्थकों में निराशा देखी गई।
1994 में आयोजित कुर्मी चेतना रैली ने बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के उदय में अहम भूमिका निभाई थी। इस बार उम्मीद की जा रही थी कि उनके बेटे निशांत कुमार राजनीति में अपनी एंट्री करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
नीतीश और निशांत ने रैली से दूरी क्यों बनाई?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार अब जाति आधारित राजनीति पर निर्भर नहीं हैं, इसलिए उन्होंने रैली से दूरी बनाई। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि निशांत अभी राजनीति में आने के लिए तैयार नहीं हैं, हालांकि हरनौत (नालंदा) सीट से उनके चुनाव लड़ने की चर्चाएं जोरों पर हैं।
जेडीयू नेताओं ने जताई नाराजगी
जेडीयू के कई नेताओं ने निशांत की गैरमौजूदगी पर निराशा जताई। जेडीयू नेता अभय पटेल ने कहा:
“हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके बेटे निशांत कुमार को बुलाया था, लेकिन वे नहीं आए। अगर निशांत भाई आते तो यह रैली और सफल होती।”
वहीं, बीजेपी नेताओं ने निशांत के राजनीति में आने का समर्थन किया और कहा कि अगर वह राजनीति में आते हैं तो उनका स्वागत किया जाएगा।
बिहार में कुर्मी समाज की घटती भागीदारी
रैली में बिहार में कुर्मी समाज की घटती राजनीतिक भागीदारी पर चिंता जताई गई। पहले जहां इस समाज से कई सांसद और विधायक हुआ करते थे, अब उनकी संख्या कम हो गई है। इस आयोजन में नेपाल से भी बड़ी संख्या में कुर्मी समुदाय के लोग शामिल हुए, जिससे इस समाज की मजबूती का संकेत मिलता है।
क्या निशांत कुमार राजनीति में आएंगे?
बिहार में 2025 के चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निशांत कुमार राजनीति में कदम रखेंगे? और क्या कुर्मी समाज अपनी राजनीतिक पकड़ दोबारा मजबूत कर पाएगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।