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कानपुर में कोरोना काल के बाद से इस वर्ष मोहर्रम में अनुमति मिली है। वहीं अब तक 1900 लोग हज के लिए जा चुके है। वहीं 17 दिन के सफर में 50 हजार की बजाय एक लाख रुपये का खर्च है।
कानपुर, जागरण संवाददाता। हज के बाद अब उमरा करना भी आसान नहीं रहा। इस पर महंगाई का असर पड़ा है। उमरा करना दोगुणा महंगा हो गया है। कोरोना काल में दो वर्ष उमरा करने जायरीन नहीं गए। इस वर्ष अरबी माह मोहर्रम में उमरा की अनुमति मिली है।
उमरा के लिए जायरीन को एक लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। कोरोना काल से पहले 50 हजार से 60 हजार रुपये उमरा के लिए लग रहे थे। वहीं इस वर्ष प्रति जायरीन हज के लिए लगभग 4 लाख रुपये खर्च हुए हैं। कोरोना काल से पहले उमरा के लिए हर माह औसत तीन से चार हजार लोग जाते थे। इस वर्ष एक माह में 1900 लोग ही गए हैं।
कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले दो वर्षों से भारत से जायरीन न तो हज पर जा पाए न ही उमरा कर सके। सऊदी अरब सरकार ने हज के बाद इस वर्ष उमरा की भी अनुमति दी है। अरबी महीने मोहर्रम से रमजान तक नौ महीने लोग उमरा पर जा सकेंगे। उमरा करने का रास्ता तो खुल लेकिन यह दोगुण महंगा हो गया है।
इसकी वजह सऊदी अरब में ठहरने, खाने व किराये में हुई वृद्धि है। कोरोना संक्रमण से पहले 17 दिन के उमरा के सफर के लिए प्रति जायरीन 50 से 60 हजार रुपये की धनराशि खर्च होती थी। इसमें मक्का व मदीना शरीफ के सफर के साथ रहने व खाने की व्यवस्था रहती थी। उमरा के लिए अनुमति मिलने के बाद सितंबर में शहर से अब तक 1900 लोग रवाना हो चुके हैं।
हज पर न पाने वाले करते उमरा : हज करना अनिवार्य है जबकि उमरा ऐच्छिक है। जो लोग महंगाई की वजह से हज पर नहीं जा पाते हैं वे मक्का व मदीना की जियारत करने तथा काबा का तवाफ (परिक्रमा) करने के लिए कम खर्च पर उमरा करने का विकल्प चुनते हैं। हज का सफर लगभग 40 दिन का होता है जबकि उमरा में 16 से 17 दिन लगते हैं।
उमरा करना लगभग दोगुणा महंगा हो गया है। सऊदी अरब में ठहरने, खाने, पांच प्रतिशत वैट लगने तथा ट्रांसपोर्ट सहित अन्य खर्चे महंगे होने से उमरा पर असर पड़ा है। जिन लोगों ने हज के लिए योजना बनाई थी और महंगाई की वजह से न जा सके वे उमरा के लिए रवाना हो रहे हैं।– शारिक अलवी, हज प्रशिक्षक
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