उदयपुर: कहते हैं कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं और जिनका मिलना तय होता है, वे चाहे कितनी ही मुश्किलों से गुजरें, अंततः एक-दूसरे का हाथ थाम ही लेते हैं। प्रतापगढ़ के रहने वाले मनसुख और डूंगरपुर के पूनमचंद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। दोनों ही जन्म से दृष्टिहीन हैं और अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें मिलाया और अब वे उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान में एक-दूसरे के साथ सात फेरे लेने जा रहे हैं।
संघर्षों से भरी रही जिंदगी मनसुख जब चार साल की थीं, तब उन्हें तेज बुखार हुआ, जिसके संक्रमण के कारण उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बिना देखे भी अपने रोजमर्रा के कामों को खुद से करने की आदत डाल ली। वहीं, पूनमचंद बचपन से ही दृष्टिहीन हैं। इस वजह से वे ज्यादा बाहर नहीं जाते थे और समाज से कटे रहते थे। लेकिन जीवन यापन के लिए उन्होंने हिम्मत दिखाई और एक होटल में काम करना शुरू किया।
मुलाकात जो बनी जिंदगी का नया मोड़ मनसुख और पूनमचंद की मुलाकात एक संयोग था, लेकिन इसने उनके जीवन में नई रोशनी ला दी। जब दोनों ने एक-दूसरे से बातें की, तो उन्हें एहसास हुआ कि वे एक-दूसरे को समझ सकते हैं और एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं। यही वजह है कि दोनों ने शादी करने का फैसला किया। नारायण सेवा संस्थान द्वारा आयोजित दिव्यांग सामूहिक विवाह समारोह में मनसुख और पूनमचंद विवाह के पवित्र बंधन में बंधेंगे। यह विवाह उनके लिए सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत होगी, जहां वे एक-दूसरे के सहारे अपने भविष्य की राह तय करेंगे।