जमात-ए-इस्लामी: 37 साल के बहिष्कार के बाद चुनाव में भागीदारी की चुनौती
जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में हुई थी और यह पाकिस्तान की सबसे पुरानी इस्लामी राजनीतिक पार्टी है। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य इस्लामिक विचारधारा पर आधारित राजनीति करना है। जमात-ए-इस्लामी की स्थापना के समय से लेकर आज तक इस पार्टी ने पाकिस्तानी राजनीति में अहम भूमिका निभाई है।जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तानी राजनीति के लिए अपने विचारधारा और मानवाधिकार के मुद्दों पर जोर दिया है। इस पार्टी ने हमेशा से व्यापक समर्थन प्राप्त किया है और उसके नेताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राजनीति में भाग लिया है।
37 साल के बहिष्कार के बाद चुनाव में भागीदारी
जमात-ए-इस्लामी को 1977 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रशासन ने निषेधित कर दिया था। इसके बाद यह पार्टी 37 साल तक किसी भी चुनाव में भाग नहीं ली। लेकिन हाल ही में जमात-ए-इस्लामी ने चुनाव कमीशन को चुनाव में भाग लेने की अनुमति देने के लिए अपील की है।जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का कहना है कि उन्हें भी देश की राजनीति में अपने विचार रखने का अधिकार होना चाहिए। उनका मानना है कि उन्हें भी चुनाव में भाग लेने का समान अधिकार होना चाहिए, जैसा कि दूसरी राजनीतिक पार्टियों को है।
चुनाव कमीशन ने क्यों लगा रखा है बैन?
चुनाव कमीशन ने जमात-ए-इस्लामी की अनुमति देने से पहले कई मामलों की जांच की है। इसके बाद ही यह निर्णय लिया जाएगा कि क्या इस पार्टी को चुनाव में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी या नहीं।चुनाव कमीशन ने जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ कई मामलों की जांच की है, जिसमें इस पार्टी के नेताओं के खिलाफ लगे गंभीर आरोप भी शामिल हैं। इसके अलावा, चुनाव कमीशन ने जमात-ए-इस्लामी की चुनाव रैलियों और अन्य गतिविधियों की भी जांच की है।इसके अलावा, चुनाव कमीशन ने जमात-ए-इस्लामी के नेताओं के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच भी की है। इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें इस पार्टी के नेताओं को अपराधिक मामलों में शामिल होने का आरोप लगा था।चुनाव कमीशन का कहना है कि वह जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच पूरी तरह से करेगा और उसके बाद ही यह निर्णय लिया जाएगा कि क्या इस पार्टी को चुनाव में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी या नहीं।इस बारे में जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का कहना है कि वे चुनाव कमीशन के निर्णय का पालन करेंगे और उनकी जांच में पूरी तरह से सहयोग करेंगे।इस प्रकार, जमात-ए-इस्लामी की चुनाव में भागीदारी की चुनौती बनी हुई है और चुनाव कमीशन के निर्णय पर आधारित होगी कि यह पार्टी आगे के चुनाव में भाग ले सकेगी या नहीं।