ये उस वक्त की बात है जब पशुपति कुमार पारस बिहाल लोजपा का प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे । चिराग पासवान ने उन्हें हटाकर दलित प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी दे दी । ये पशुपति कुमार पारस का अपमान था । चूंकि रामविलास पासवान उस वक्त जीवित थे, लिहाजा पशुपति अपमान का कड़वा घूंट पीकर रह गए।
रामविलास पासवान के मृत्यु के ठीक बाद एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें चार सांसदों ने पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में आस्था जताते हुए चिराग पासवान से बगावत का एलान किया था । उस वक्त खुद पशुपति कुमार पारस ने मीडिया के सामने आकर उस चिट्ठी का खंडन किया था । पशुपति कुमार पारस ने कहा था कि इस वक्त पूरा परिवार शोक में डूबा है ।
विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार पशुपति कुमार पारस दिल्ली में डेरा डाले हुए थे । वे मुश्किल से एक या दो बार पटना आए होंगे। दिल्ली में पशुपति कुमार पारस तीन-चार बार जेडीयू के सांसद ललन सिंह से मिले । पिछले हफ्ते ही ललन सिंह ने पशुपति कुमार पारस की मुलाक़ात नीतीश कुमार से करवाई । सूत्रों की मानें तो इससे पहले दो बार फोन पर भी बातचीत हुई थी । नीतीश बस इतना चाहते थे कि चार नहीं, बल्कि पांचो सांसद टूटकर आएं।
पशुपति पारस, प्रिंस, महबूब अली कैसर तो पहले से तैयार बैठे थे, लेकिन वीणा देवी और चंदन सिंह थोड़ा सशंकित थे । इसके बाद ललन सिंह ने चंदन सिंह के भाई सूरजभान सिंह से खुद बात की, सूरजभान सिंह और चंदन सिंह को कुछ विश्वास दिलाया गया। एक बार चंदन सिंह ने पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में भरोसा जता दिया तो फिर वीणा सिंह ने भी हामी भर दी ।
हैरानी की बात है कि इतना सबकुछ होता रहा, दिल्ली से लेकर पटना तक मेल-मुलाक़ात का दौर चलता रहा और चिराग को भनक तक नहीं लगी । शायद इसे ही “चिराग तले अँधेरा” कहा गया है। अब “I miss u Papa” कहने से क्या लाभ ?