
कैप्टन अमरिन्दर सिंह कभी पंजाब कांग्रेस की पहचान हुआ करते थे। वे इतने पावरफुल थे कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी को भी नजरअंदाज कर दिया करते थे। दो साल पहले तक पंजाब कांग्रेस मतलब कैप्टन अमरिन्दर सिंह ही थे । खानदानी, रईस, दबंग और नेता-कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ वाले ।
दो सालों के अंदर कैप्टन के हाथों से सबकुछ छिन गया
लेकिन दो साल के अंदर स्थिति इतनी बदल गई कि पहले तो सिद्धू के कंधे पर बंदूक रख कैप्टन को बार-बार बेइज्जत किया गया, फिर अंत में सोनिया गांधी के एक फोन के बाद उन्हें जबरन इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा। कैप्टन मीडिया में सिद्धू के खिलाफ चाहे जितना बोलें, चिहे उन्हें पाकिस्तान समर्थक ही क्यों न कहें, लेकिन सच्चाई ये है कि आज कैप्टन अमरिन्दर सिंह के साथ एक भी कांग्रेसी विधायक नहीं है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह बिल्कुल अकेले पड़ गये हैं।
कैप्टन की बर्बादी की कहानी लिखने वाले दो अहम किरदार
कैप्टन के राजनीतिक दरख्त की जड़ो में गर्म पानी डाला प्रशांत किशोर ने और उन जड़ो में गड्ढा खोदा नवजोत सिंह सिद्धु ने । कैप्टन और प्रशांत किशोर की दुश्मनी पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ही शुरू हो गई थी ।
प्रशांत किशोर को कांग्रेस ने 88 करोड़ रुपये (अनुमानित) सिर्फ इसलिए दिए थे ताकि वो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और पंजाब में जीत दिला सकें। उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को लेकर खाट सभा कराने में प्रशांत किशोर का अहम योगदान रहा । उसके बाद शीला दीक्षित को बीच मंझधार छोड़ कर “यूपी के दो छोरे” वाली रणनीति भी प्रशांत किशोर के दिमाग़ की ही उपज थी, लेकिन कैप्टन ने पीके को पंजाब से दूर ही रखा ।
बीच चुनाव के दौरान कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने तो यह भी कह दिया था कि पंजाब कांग्रेस को जीत के लिए किसी गैर-कांग्रेसी रणनीतिकार की जरुरत नहीं है।
पीके और सिद्धु ने साढ़े तीन साल इंतजार किया
प्रशांत किशोर ने तीन साल तक कांग्रेस की तारीफ और गांधी परिवार से अपनी नजदीकी बढ़ाने पूरी ताकत लगा दी। सोनिया गांधी से भाव न मिलता देख उन्होंने प्रियंका और फिर उनके सहारे राहुल गांधी से दोस्ती बढ़ाई । पिछले एक साल में प्रशांत किशोर ने राहुल और प्रियंका गांधी को पंजाब को लेकर दो रिपोर्ट सौंपी। इन दोनों रिपोर्ट का सारांश यही था कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह की राजशाही ठाठ, उनके राष्ट्रवादी विचार की वजह से निचले और दलित तबके में भारी नाराज़गी है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसान कानूनों का भी उस तरह से तीखा विरोध नहीं किया जिस प्रकार से अकाली दल ने किया है।
कैप्टन को हटाने के लिए सिद्धू का इस्तेमाल किया गया
कैप्टन अमरिन्दर सिंह सीधे सोनिया गांधी को रिपोर्ट करते थे । लिहाजा राहुल-प्रियंका और पीके की तिकड़ी ने उन्हें ठिकाने लगाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धु को मोहरा बनाया। अपने बयानों से सिद्धू ने ठीक वही किया जैसा उन्हें बोलने के लिए कहा गया था । कैप्टन से गलती बस इतनी हुई कि उन्होंने सिद्धू को हल्के में लिया। जबतक सिद्धू अपने बयानों से माहौल तैयार कर रहे थे, तबतक राहुल-प्रियंका और पीके की तिकड़ी एक-एक कर विधायकों से वन-टू-वन चर्चा कर रही थी ।
प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव फ्लेश प्वाइंट साबित हुआ
पंजाब की मीडिया में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के हवाले से कहलवाया गया कि इस बार बड़े पैमाने पर विधायकों के टिकट काटे जाएंगे और नये लोगों को मौका दिया जाएगा। सिद्धू ने यही बात पकड़ ली । उन्होंने विधायकों को समझाया कि अपना टिकट बचाना है तो प्रदेश अध्यक्ष पर मुझे बैठाओ और कैप्टन को हटाओ । सिद्धू ने कुछ विधायकों की बात सीधे प्रियंका और राहुल गांधी से कराई । बस फिर क्या था, पंजाब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में अधिकतर विधायकों ने सिद्धू का साथ दिया। अब कैप्टन समर्थकों को डर था कि कहीं कैप्टन साहब का साथ देने के चक्कर में उनका टिकट न कट जाए ।