नई दिल्ली: ताइवान के डिप्टी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हसु स्जू-चिएन (Hsu Szu-Chien) ने कहा कि ताइवान भारत को चीन से आयात घटाने में मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) करने से दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, खासकर सेमीकंडक्टर और हाई-टेक सेक्टर में।
चीन पर निर्भरता कम करने की रणनीति
ताइवान चाहता है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और ICT उत्पादों का उत्पादन बढ़े, जिससे चीन से आयात पर निर्भरता घटे। हसु ने कहा,
“भारत के पास एक बड़ा युवा कार्यबल है, और ताइवान की तकनीक के साथ मिलकर हम हाई-टेक कंपोनेंट्स का निर्माण भारत में कर सकते हैं।”
भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 101.75 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि चीन को निर्यात सिर्फ 16.65 बिलियन डॉलर है। ताइवान इस अंतर को कम करने में मदद कर सकता है।
ताइवान-भारत व्यापार समझौते की जरूरत
हसु ने कहा कि उच्च टैरिफ (High Tariff) ताइवान की मीडियम और स्मॉल टेक कंपनियों के लिए भारत में निवेश को मुश्किल बना रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दोनों देशों को FTA पर बातचीत तेज करनी चाहिए, क्योंकि इससे व्यापार और निवेश दोनों को लाभ होगा।
मुख्य बिंदु:
- ताइवान भारत में सेमीकंडक्टर और ICT सेक्टर में निवेश बढ़ाना चाहता है।
- भारत और ताइवान पिछले 12 सालों से FTA पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है।
- भारत ताइवान का 17वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और Make in India नीति के तहत ताइवान की कंपनियों ने 4 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
- दोनों देशों ने माइग्रेशन और मोबिलिटी समझौता किया है, जिससे भारतीय श्रमिकों को ताइवान में रोजगार मिलेगा।
भारत-ताइवान संबंधों में बढ़ोतरी
हालांकि भारत और ताइवान के औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, लेकिन व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में तेजी आई है।
- 1995 में भारत ने ताइपेई में ‘इंडिया-ताइपेई एसोसिएशन’ (ITA) की स्थापना की ताकि व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।
- ताइवान ने भी दिल्ली में ‘ताइपेई इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर’ स्थापित किया है।
चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और सैन्य दबाव बढ़ा रहा है, जबकि ताइवान स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाए रखना चाहता है।
निष्कर्ष
ताइवान और भारत के बीच व्यापारिक सहयोग बढ़ सकता है, लेकिन इसके लिए FTA को अंतिम रूप देना जरूरी है। अगर यह समझौता होता है, तो भारत को चीन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी और हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरने का मौका मिलेगा।