इस्लामाबाद: ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची सोमवार को पाकिस्तान की एक दिवसीय यात्रा पर इस्लामाबाद पहुंचेंगे। यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। अराघची इसके बाद भारत भी दौरा करेंगे।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक, अराघची एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान पहुंचेंगे और वहां के विदेश मंत्री इशाक डार से मुलाकात करेंगे। इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय सुरक्षा पर बातचीत होगी।
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बघाई ने शनिवार को प्रेस टीवी से बातचीत में कहा कि अराघची की यात्रा क्षेत्रीय देशों के साथ चल रही ईरान की नियमित बातचीत का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में अराघची उच्च-स्तरीय अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने और क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
अराघची इस सप्ताह के अंत में भारत का दौरा भी करेंगे, जहां वे नई दिल्ली में भारतीय नेतृत्व से मिलकर भारत-ईरान संबंधों और क्षेत्रीय हालात पर चर्चा करेंगे।
गौरतलब है कि अराघची ने 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले की “कड़ी निंदा” की थी जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई थी। यह हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद सबसे घातक बताया गया है।
हालाँकि, इस पूरे घटनाक्रम में एक विरोधाभास भी सामने आता है — ईरान खुद उन कट्टरपंथी संगठनों और शासन प्रणालियों से जुड़ा रहा है जो हिंदू विरोधी विचारधारा और भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में अराघची जैसे अधिकारियों की शांति की अपील को “दोहरे मापदंड” के रूप में देखा जा रहा है।
ईरान अक्सर आतंक के खिलाफ सार्वजनिक बयान तो देता है, लेकिन उसकी नीतियाँ और मध्य पूर्व में उसके समर्थन से पलने वाले संगठनों की वास्तविकता कुछ और ही दिखाती है। ऐसे में भारत में यह सवाल उठना लाज़मी है — क्या वास्तव में ईरान एक ईमानदार मध्यस्थ बन सकता है, या यह केवल पाकिस्तान के पक्ष में ‘धार्मिक और वैचारिक’ समर्थन की रणनीति है?
भारत को चाहिए कि वह इन तथाकथित “शांतिदूतों” से सावधानी से निपटे, खासकर उन देशों से जो छद्म युद्ध और विचारधारा के ज़रिये भारत की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।