रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन युद्धक्षेत्र पर हावी हो गए हैं, जिससे पारंपरिक युद्ध रणनीतियों में बदलाव आ रहा है। आधुनिक युद्धों में मानव रहित हवाई वाहन (UAV) न केवल खुफिया जानकारी जुटाने में बल्कि प्रत्यक्ष हमलों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसी को देखते हुए, भारत अपनी ड्रोन और काउंटर-ड्रोन क्षमताओं को उन्नत कर रहा है।
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों द्वारा अत्याधुनिक ड्रोन तैनात किए जाने के कारण भारत ने अपनी UAV रणनीति को तेज किया है। भारतीय सेना अब अमेरिकी MQ-9B ‘स्काई गार्जियन’ और इजरायली हेरॉन TP ड्रोन का उपयोग कर रही है, जो विस्तारित उड़ान क्षमता और उन्नत निगरानी प्रणालियों से लैस हैं।
इसके साथ ही, भारत स्वदेशी ड्रोन तकनीकों को भी विकसित कर रहा है। DRDO का ‘रुस्तम-II’ 27,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है और 18 घंटे तक संचालन कर सकता है। वहीं, ‘आर्चर-NG’ हथियारबंद ड्रोन 30,000 फीट की ऊंचाई और 1,000 किलोमीटर की रेंज तक उड़ान भर सकता है। इसके अलावा, ‘स्काई-स्ट्राइकर’ और ‘नागास्त्र-1’ जैसे स्वदेशी ड्रोन पहले ही सेना में शामिल किए जा चुके हैं।
भारत की ड्रोन रणनीति में निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। कई स्टार्टअप और रक्षा कंपनियां स्वदेशी ड्रोन निर्माण में योगदान दे रही हैं, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा मिल रहा है। सेना ने 2021 में 75-ड्रोन स्वार्म तकनीक का सफल परीक्षण किया, जबकि 2023 में 100-ड्रोन के युद्धक्षेत्र में तैनाती के लिए परीक्षण किए गए।
ड्रोन युद्ध में बढ़ती चुनौतियों के मद्देनजर, भारत ने एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी पर भी ध्यान केंद्रित किया है। DRDO द्वारा विकसित D4 (Drone Detect, Deter, Destroy) प्रणाली अब सीमाओं पर तैनात की जा रही है। ‘ड्रोनाम’ नामक स्वदेशी एंटी-ड्रोन प्रणाली पंजाब सीमा पर 55% दुश्मन ड्रोन को नष्ट करने में सफल रही है।
भारत ड्रोन युद्धक्षमता बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) सिस्टम भी विकसित कर रहा है, जिससे ड्रोन सिस्टम साइबर हमलों, जैमिंग और स्पूफिंग से सुरक्षित रह सकें।
स्वदेशी नवाचार, रणनीतिक अधिग्रहण, कम लागत वाले स्वायत्त हमलावर ड्रोन, स्वार्म टेक्नोलॉजी और निजी क्षेत्र के सहयोग से भारत अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले ड्रोन युद्धक्षमता में अंतर को कम कर रहा है।