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कैसे असम की काली हल्दी ने राजस्थान के किसानों की रुचि को बढ़ाया

कैसे असम की काली हल्दी ने राजस्थान के किसानों की रुचि को बढ़ाया

क्या आप जानते हैं कि हल्दी, जिसे आमतौर पर पीली जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है, उसकी एक काली-नीली प्रजाति भी होती है? यह लोकप्रिय मसाला न केवल भारतीय रसोई में अपनी अहमियत बनाए रखता है बल्कि समय के साथ इसका महत्व और भी बढ़ा है। ‘हल्दी’ को एक ऐसी जड़ी-बूटी माना जाता है जो याददाश्त बढ़ाने, मूड सुधारने और त्वचा को निखारने में मदद करती है।

क्या है काली हल्दी?

काली हल्दी, जिसे वैज्ञानिक रूप से Curcuma Caesia कहा जाता है, एक दुर्लभ औषधीय पौधा है जो मुख्य रूप से असम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में पाया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यह साधारण हल्दी की तुलना में और भी अधिक लाभकारी होती है। जब इसे काटा जाता है, तो इसका रंग नीला और बैंगनी दिखाई देता है। यह न केवल प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी साबित हो रही है।

राजस्थान में काली हल्दी की बढ़ती खेती

पिछले सात वर्षों में, राजस्थान में किसान बड़े पैमाने पर काली हल्दी की खेती कर रहे हैं। विशेष रूप से पिछले दो वर्षों में इसकी खेती में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। देश में आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण इस मसाले की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे इसका बाजार भी विकसित हो रहा है।

असम के कामाख्या मंदिर से जुड़ा इतिहास

परंपरागत रूप से, काली हल्दी पश्चिम बंगाल और असम में उगाई जाती रही है। राजस्थान में यह मुख्य रूप से जयपुर, दौसा और सीकर में उगाई जा रही है। कृषि विशेषज्ञ अतुल गुप्ता बताते हैं, “काली हल्दी एक औषधीय पौधा है। इसे पहली बार असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या माता मंदिर के आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया गया था। आज भी यह पश्चिम बंगाल और असम में धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ कार्यों में उपयोग की जाती है।”

उन्होंने आगे बताया कि काली हल्दी की खेती को भारत के तटीय इलाकों में बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं, और पिछले दो वर्षों में इस दिशा में अच्छी सफलता मिली है। “हमने यह साबित कर दिया है कि 45-50 डिग्री तापमान और 6 से 8 हाइड्रोजन पोटेंशियल वाली मिट्टी में भी काली हल्दी की अच्छी खेती संभव है। जयपुर और सीकर जैसे इलाकों में भी इसकी खेती सफल रही है,” उन्होंने कहा।

भारत में बढ़ता बाजार

गुप्ता के अनुसार, काली हल्दी का उपयोग न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी तेजी से बढ़ रहा है। “काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के इलाज में किया जाता है। यही कारण है कि अब चीन जैसे देश भी इसे आयात कर रहे हैं। भारत में भी कई फार्मा कंपनियां काली हल्दी का उपयोग कर रही हैं।”

उन्होंने आगे बताया, “यदि कोई किसान एक एकड़ जमीन पर काली हल्दी की खेती करता है, तो वह 7 से 8 लाख रुपये तक की कमाई कर सकता है। एक एकड़ में खेती करने के लिए लगभग 400 किलोग्राम राइजोम की आवश्यकता होती है, जिससे 7000 किलोग्राम तक उत्पादन संभव है। किसान काली हल्दी के साथ अन्य औषधीय पौधों की भी खेती कर सकते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी।”

कैसे दिखती है काली हल्दी?

गुप्ता बताते हैं कि काली हल्दी का बाहरी स्वरूप अदरक और चुकंदर जैसा होता है, लेकिन जब इसे काटा जाता है, तो यह नीले और बैंगनी रंग की दिखाई देती है। यह प्राकृतिक दर्द निवारक के रूप में भी काम करती है। “आज देश की बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियां इस पर शोध कर रही हैं,” उन्होंने कहा।

बाजार में कैसे बेची जाती है काली हल्दी?

गुप्ता के अनुसार, काली हल्दी को बेचने के लिए किसी प्रसंस्करण की आवश्यकता नहीं होती। इसे ताजा ही बाजार में बेचा जाता है क्योंकि इसे सुखाने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने कहा, “कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली यह खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसकी मांग बढ़ने के कारण यह एक लाभदायक कृषि विकल्प बन चुकी है। किसान इसे निर्यात कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अच्छा लाभ कमा सकते हैं।”

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