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तमिलनाडू का स्टेनिस्लॉस लोर्दूस्वामी कैसे बन गया झारखंड का फादर स्टेन ?

ये झारखंड के ईसाई मिशनरियों के नेटवर्क का ही कमाल है कि तमिलनाडु का रहने वाला स्टेनिस्लॉस लोर्दूस्वामी आदिवासियों के बीच बाहरी भगाओ अभियान चलाता था । केरल, ओडिशा या गुजरात का एक्टिविस्ट पत्थलगड़ी आंदोलन कर खूंटी के आदिवासियों को यकीन दिलाने में कामयाब रहता है कि कोई बाहरी तुम्हारे इलाके में नहीं आ सकता, सिवाय हमलोगों के…..

कई देशों में स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन हुए
कई देशों में स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन हुए

कौन थे फादर स्टेन स्वामी ?

स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके जाननेवालों के अनुसार उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से 1970 के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की, जहां उनकी दोस्ती आर्चबिशप होल्डर कामरा से हुई, जिनके ब्राजील के गरीबों के लिए काम ने उन्हें काफी प्रभावित किया। इसके बाद वे 1975 से 1986 तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया।

झारखंड से कैसे जुड़ा नाता ?

चाईबासा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दामू वानरा ने बताया कि समाजशास्त्र से एमए करने के बाद कैथोलिक्स के चलाए जा रहे बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में निदेशक के तौर पर काम करने के दौरान ही स्टेन स्वामी झारखंड के चाईबासा आने लगे। उन्होंने गरीबों और वंचितों के साथ रह कर उनके जीवन को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की। नब्बे के दशक में स्वामी ने आदिवासियों के बीच मानवाधिकार और जागरुकता के लिए काम किया था ।

 

थोड़े उग्र वामपंथी लेकिन उससे कहीं अधिक ईसाई

डायन बिसाही उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान
डायन बिसाही उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में रिटायर होने के बाद स्टेन स्वामी चाईबासा में ही स्थाई तौर पर रहने लगे। ‘बिरसा’ नाम के एनजीओ के जरिए मुख्य रूप से मिशनरी के सामाजिक कार्य के लिए ‘जोहार’ नाम से एनजीओ की शुरुआत की। बाद में वो रांची के नामकुम में जाकर रहने लगे और चाईबासा में कभी-कभी जाते थे। फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया। वर्ष 2010 में फादर स्टेन स्वामी की ‘जेल में बंद कैदियों का सच’ नाम की किताब प्रकाशित हुई, जिसमें इस बात की चर्चा थी कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया।

भीमा कोरेगांव हिंसा और पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थक

दामू वानरा के मुताबिक ‘स्वामी लगातार कहते थे कि गरीबों, आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ो लेकिन कानून अपने हाथ में मत लो, लेकिन वह स्वयं पहले खूंटी के पत्थलगड़ी आंदोलन में कानून अपने हाथ में लेने और आदिवासियों को भड़काने के मामलों में पुलिस प्राथमिकी में आरोपी बनाए गए। फिर भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया।’ स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे। झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था।

NIA ने क्या कहा था ?

एनआईए ने आरोप लगाया था कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं। वो इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं और सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं। जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था।

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