Wednesday 12th of March 2025 07:57:33 PM
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दोनों पैरों से दिव्यांग “मोनी” सबके लिए बनीं मिसाल, चुनौतियों से लड़कर DU से हासिल की PhD की डिग्री

नई दिल्ली: अगर कोई व्यक्ति मन में कुछ बनने की ठान ले तो शारीरिक अक्षमता भी उसके मार्ग में बाधा नहीं बन सकती। तमाम चुनौतियों को पार कर इंसान कड़ी मेहनत से सफलता को प्राप्त कर सकता है। यह साबित कर दिखाया है दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएचडी पूरी करने वाली मोनी ने, जो बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं।

गलत इलाज ने बनाया दिव्यांग, लेकिन नहीं छोड़ा हौसला

मोनी ने बताया कि जब वह 9-10 महीने की थीं, तभी डॉक्टर की गलती के कारण उन्हें दिव्यांगता का सामना करना पड़ा। वर्तमान में वह बैसाखियों के सहारे चलती हैं। उनके पिता नगर निगम में माली की नौकरी करते थे, जिसके कारण उनका परिवार दिल्ली के बुराड़ी में आ बसा। हालांकि, उनका मूल निवास यूपी के हापुड़ जिले के पिलखुवा के पास है।

पिता के सपने ने बढ़ाया हौसला

बचपन से ही मोनी के पिता चाहते थे कि उनका कोई बच्चा डॉक्टर बने। लेकिन उनके भाई को पढ़ाई में रुचि नहीं थी, इसलिए पिता ने यह सपना मोनी से जोड़ा। हालांकि, दिव्यांगता के कारण वह मेडिकल फील्ड में नहीं जा सकती थीं, इसलिए उन्होंने अकादमिक क्षेत्र में जाने का फैसला किया और पीएचडी करके डॉक्टर बनने का संकल्प लिया।

आईपी कॉलेज से ग्रेजुएशन और मिरांडा हाउस से मास्टर्स

मोनी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के आईपी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उनके पिता की आमदनी इतनी नहीं थी कि वे उनके लिए विशेष वाहन की व्यवस्था कर सकें, इसलिए उन्होंने हॉस्टल के लिए आवेदन किया। पहले साल में उन्हें हॉस्टल नहीं मिला, लेकिन बाद में शिक्षकों की मदद से उन्हें स्पेशल कैटेगरी में हॉस्टल मिला। इसके बाद उन्होंने मिरांडा हाउस से मास्टर्स किया।

कोचिंग न मिलने के कारण बदला लक्ष्य

मास्टर्स के बाद मोनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहती थीं, लेकिन कोचिंग सेंटर की सीढ़ियां उनके लिए बड़ी चुनौती थीं। इस बाधा के कारण उन्होंने अकादमिक क्षेत्र में ही आगे बढ़ने का फैसला किया और पीएचडी में दाखिला लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा दिव्यांग छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा की घोषणा से उन्हें राहत मिली, जिससे उनकी फीस माफ हो गई और हॉस्टल में भी कम खर्च आया।

पीएचडी का सफर और नई उपलब्धि

मोनी ने 2018 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी में दाखिला लिया। उनका शोध विषय “आधुनिक भारत में विकलांगता और कानून” था। दिव्यांग छात्रों को पीएचडी पूरी करने के लिए 10 साल का समय मिलता है, लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत से यह शोध कार्य 6 साल में पूरा कर लिया। अक्टूबर 2024 में उनकी पीएचडी पूरी हुई और डीयू के 101वें दीक्षांत समारोह में उन्होंने अपनी डिग्री प्राप्त की।

अब प्रोफेसर बनने की जंग

मोनी का अगला लक्ष्य कॉलेज में सहायक प्रोफेसर की नौकरी पाना है। उन्होंने कहा कि अब उनकी योग्यता पूरी हो चुकी है और वे अपने करियर की नई यात्रा शुरू करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी कर डॉक्टर बनने का सपना साकार किया, लेकिन अब वे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़कर दूसरों को भी प्रेरित करना चाहती हैं।

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