रांची में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का पहला मामला सामने आया है। इस बीमारी से ग्रसित साढ़े पांच साल की बच्ची एक निजी अस्पताल में भर्ती है और वेंटिलेटर सपोर्ट पर है। डॉक्टरों के अनुसार समय पर पहचान और इलाज से इस बीमारी का प्रबंधन किया जा सकता है।
डॉक्टर का बयान:
चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. राजेश ने बताया कि आठ दिन पहले बच्ची को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। वह हिल-डुल नहीं पा रही थी और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी।
- बच्ची का इलाज आईवीआईजी और मिथाइल प्रेडनीसोलोन दवाओं से किया गया।
- फिलहाल बच्ची की हालत स्थिर है और वह आंखें खोल रही है, लेकिन पूरी तरह रिकवर नहीं हो पाई है।
- डॉ. राजेश ने इसे कोई रेयर बीमारी नहीं बताया और कहा कि समय पर पहचान व इलाज बेहद जरूरी है।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) क्या है?
यह एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से तंत्रिकाओं पर हमला करती है। इसका सटीक कारण अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन यह आमतौर पर किसी संक्रमण के बाद होता है।
लक्षण:
- हाथ-पैर में झुनझुनी और सुन्नपन
- मांसपेशियों में कमजोरी
- चलने-फिरने में परेशानी
- सांस लेने में दिक्कत
- गंभीर मामलों में पैरालिसिस
बीमारी का खतरा किन्हें अधिक:
- बच्चों और बुजुर्गों में इसका खतरा अधिक होता है।
- इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर यह तेजी से नसों पर अटैक करता है।
GBS से बचाव के उपाय:
- पानी उबालकर पीएं: दूषित पानी से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
- खुले या बासी खाने से बचें: ताजा भोजन का ही सेवन करें।
- लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करें: मांसपेशियों में कमजोरी या खिंचाव दिखने पर तुरंत मेडिकल सहायता लें।
डब्ल्यूएचओ को सूचना:
डॉ. राजेश ने बताया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए रांची के सिविल सर्जन और डब्ल्यूएचओ के लखनऊ प्रतिनिधि को पहले ही सूचित किया गया था।
महत्वपूर्ण: गुइलेन-बैरे सिंड्रोम की पहचान और समय पर इलाज से मरीज की रिकवरी में तेजी आ सकती है।