आदिवासी वेशभूषा में नजर आए विधायक सहित अन्य कांग्रेसी
सिमडेगा जिला मुख्यालय स्थित अलबर्ट एक्का मैदान में जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिलाध्यक्ष अनुप केसरी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रुप से सिमडेगा विधायक भूषण बाड़ा उपस्थित थे। विधायक भूषण बाड़ा ढ़ोल नगाड़े एवं मांदर की थाप पर आदिवासी गीतों पर थिरकते हुए नजर आए।
आदिवासी संस्कृति एवं परंपरा को बचाने की जरुरत: भूषण बाड़ा
अपने संबोधन में विधायक भूषण बाड़ा ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी समाज की भाषा को बचाने तथा संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसे बचाने के लिए सरकार ने कुछ दिन पूर्व ही सकारात्मक पहल किया है। लोग जनजातीय भाषा और बोली को भूलते जा रहे है। उन्होने कहा कि आदिवासी समाज आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। उन्होंने आदिवासी दिवस के मौके पर तमाम आदिवासी भाई-बहनों को अपने हक और अधिकार के लिए जागने और एकजुट होने का आह्वान किया।
हमारी बेटियों ने अपने खेल से पूरे विश्व में आदिवासी मान-सम्मान का परचम लहराया
भूषण बाड़ा ने कहा कि आदिवासी संस्कृति हमारे राज्य की शंख-कोयल की धाराओं, कोयल की कू-कू की मधुर आवास, जंगल व पहाड़ों के बीच में बसती है। इसे बचा कर रखना हमारा जिम्मेवारी है। आज हमारा आदिवासी समाज अपनी क्षमता, ज्ञान, बल, विवेक और बुद्धि के बल पर सभी स्थानों में अपना परचम लहरा रहा है। हमारे आदिवासी समाज की बेटे बेटियां हैं जिनके जोश, जज्बा और हिम्मत के दम पर देश गौरान्वित है। हॉकी खेल के माध्यम से कई मेडल देश की झोली में डाला है।
नशा और अशिक्षा आदिवासी समाज के विकास में सबसे बड़ी बाधा
हमारा समाज के उत्थान में नशापान और अशिक्षा बहुत बड़ी बाधा है। इसे हम सभी को मिलकर दूर करना होगा। आने वाली पीढ़ी को इस अभिशाप से दूर रखना हमारी जिम्मेवारी है। और इसके लिए आज और अभी से काम करने की जरूरत है। खासकर यूवा वर्ग को नशा जैसी बुराइयों से दूर करने की जरूरत है। बच्चों को स्कूल से जोड़ने की जरूरत है। हमारे समाज के युवा नशापान छोड़ हेमन्त सरकार की शरण मे आएं।
विधायक ने कहा कि आदिवासियों को शिक्षित करने और उनकी भाषाओं को बचाने का एकमात्र तरीका उन्हें अपनी भाषा मे शिक्षा दी जानी चाहिए। इसे हमारी हेमन्त सोरेन की सरकार ने गम्भीरता से लिया है। हमारी क्षेत्रीय भाषा को बचाय रखने के उद्देश्य से नोकरी में भी क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान को अनिवार्य किया गया है। स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है ताकि हमारी पीढ़ी हमारी भाषा संस्कृति को जान सके और पहचान सके।