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दिल्ली में फर्जी डिग्री रैकेट का भंडाफोड़, 5 गिरफ्तार: 228 मार्कशीट, 27 डिग्री और हजारों फर्जी दस्तावेज बरामद

नई दिल्ली:
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने एक बड़े फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट रैकेट का भंडाफोड़ किया है। इस सिलसिले में पुलिस ने 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जो देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के फर्जी मार्कशीट, डिग्री और माइग्रेशन सर्टिफिकेट बनाकर छात्रों को बेचते थे।

स्पेशल कमिश्नर (अपराध शाखा) देवेश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि यह गिरोह बेहद संगठित तरीके से दिल्ली और एनसीआर के कोचिंग सेंटरों और एजुकेशन कंसल्टेंसी के जरिए काम कर रहा था। गिरोह के सदस्य छात्रों से भारी रकम लेकर पुरानी तारीखों वाली डिग्रियां और सर्टिफिकेट उपलब्ध कराते थे।


🧾 बरामद सामान:

  • 228 फर्जी मार्कशीट

  • 27 फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट

  • 20 फर्जी माइग्रेशन सर्टिफिकेट

  • 20 मोबाइल फोन और 6 लैपटॉप

जब्त किए गए डिजिटल उपकरणों की फॉरेंसिक जांच में 5,000 से अधिक फर्जी डिग्री और दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी मिली, जिनमें BA, BSc, BCom, BTech, BEd, MBA और MA जैसी डिग्रियां शामिल हैं।


👤 मुख्य आरोपी:

गिरफ्तार मुख्य आरोपी विक्की हरजानी है, जो “परमहंस विद्यापीठ” नामक संस्था का मालिक है और NSP (नेताजी सुभाष प्लेस) और रोहिणी में इसका संचालन करता है।
उनके वाहन और दफ्तर से 75 फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट बरामद हुए, जिन पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, सिक्किम, मेघालय और तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों के नाम थे।

अन्य गिरफ्तार आरोपी:

  • विवेक गुप्ता (नोएडा में 6–7 शिक्षण संस्थानों का संचालन करता है)

  • सतबीर सिंह

  • नारायण जी

  • अवनीश कंसल


🧠 मोডस ऑपरेंडी (कार्यप्रणाली):

  1. कोचिंग सेंटर और टेली-कॉलर्स के ज़रिए छात्रों से संपर्क किया जाता था।

  2. छात्रों की शैक्षिक और व्यक्तिगत जानकारी ली जाती थी।

  3. ये जानकारी फर्जी दस्तावेज बनाने वाले सदस्यों को भेज दी जाती थी।

  4. फर्जी दस्तावेज इस तरह बनाए जाते थे कि वे असली विश्वविद्यालय के प्रमाणपत्रों जैसे दिखें

  5. आरोपी फर्जी नामों और पहचान का इस्तेमाल करते थे, ताकि कानून की पकड़ में न आएं।

  6. रैकेट के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया और छात्रों के इलाकों में पंपलेट्स बांटे जाते थे।


🏫 छात्रों को टारगेट किया जाता था

वे छात्र जिन्हें डिग्री की ज़रूरत थी लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे, या शॉर्टकट की तलाश में थे, उन्हें ये लोग निशाना बनाते थे।

पुलिस को शक है कि कुछ विश्वविद्यालय कर्मचारियों की मिलीभगत भी हो सकती है, जिन्होंने फॉर्मेट्स या गोपनीय जानकारी उपलब्ध कराई हो। मामले की जांच जारी है।

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