मंटू सोनी ने दायर किया है क्रिमनल रिट याचिका, जस्टिस एस के द्विवेदी की कोर्ट में हुई सुनवाई
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सरकार ने विधानसभा में दिए थे दो तरह के जवाब
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कोर्ट ने सरकार से चार हफ्ते में मांगा जवाब
उज्जवल दुनिया संवाददाता/ अजय निराला
हजारीबाग। जिले के बड़कागांव के ढेंगा में 14 अगस्त 2015 को हुई गोलीकांड मामले में दायर क्रिमनल रिट याचिका की सुनवाई गुरुवार को हाईकोर्ट में जस्टिस एस के द्विवेदी की अदालत में हुई। ढेंगा गोलीकांड में घायल मंटू सोनी ने हाईकोर्ट में क्रिमनल रिट संख्या 127/21 दायर किया है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

इस घटना में सबसे मुख्य बात यह है कि सरकार ने विधानसभा में पूछे गए दो सवालों के जवाब में दो तरह के जवाब दिए हैं। एक सवाल के जवाब में कहा कि उस घटना में पुलिस ने हवाई फायरिंग किया और कोई घायल नहीं हुआ, वहीं दूसरे सवाल के जवाब में कहा है कि आत्मरक्षा में फायरिंग की गई थी जिसमें मंटू सोनी सहित पांच अन्य लोग घायल हुए थे। जबकि पुलिस केस संख्या 167/15 में किसी को घायल होने का जिक्र नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उड़ाया गया माखौल
हाईकोर्ट में दायर क्रिमनल रिट याचिका में मंटू सोनी ने कहा है कि वह ढेंगा गोलीकांड का पीड़ित है। लेकिन पुलिस ने उसे अभियुक्त बनाकर जेल भेज दिया था। इसके लिए पुलिस ने सबूत छुपाकर फर्जी आरोप लगाए हैं। पुलिस ने उसके घायल होने और सदर अस्पताल में पुलिस में दिए बयान को छुपाते हुए कांड संख्या 167/15 में उसे अभियुक्त बना दिया। इतना ही नहीं केस का अनुसंधानकर्ता अवधेश सिंह को बना दिया गया। जो इस घटना में खुद घायल हुआ था। जेल से बंदी आवेदन पत्र लिखकर मंटू सोनी ने अधिकारियों पर कोर्ट में पत्र लिखकर मामला दर्ज करने का आग्रह किया था, कोर्ट ने आरोपियों पर मामला दर्ज करने का आदेश दिया लेकिन 11 महीने बाद मंटू सोनी के आवेदन पर मामला दर्ज किया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एक ही घटना में अलग-अलग एफआईआर होने पर दोनों कांडों का अनुसंधान कर्ता एक ही अधिकारी करेंगे ।
जो पुलिस केस में गवाह है, उसे बना दिया अनुसंधानकर्ता
मंटू सोनी के आवेदन पर बड़कागांव थाना में दर्ज कांड संख्या 214/16 का अनुसंधान कर्ता उसी अधिकारी को बना दिया गया जो पुलिस केस में मंटू सोनी के खिलाफ गवाह है। पुलिस की मनमानी यहीं नहीं रुकी। कांड संख्या 214/16 में अनुसंधान कर्ता अरुण हेम्ब्रम और तत्कालीन एसडीपीओ अनिल सिंह ने मंटू सोनी का सदर अस्पताल और जेल अस्पताल के गन शॉट इंज्युरी को दरकिनार कर कांड संख्या 167/15 और 214/16 के तथ्यों और सबूतों की जांच किए बिना एकतरफा कार्रवाई करते अभियुक्तों को दोषमुक्त करते हुए केस बंद करने की अनुसंशा कोर्ट में कर दिया। इन अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के अनुसार कार्रवाई की मांग याचिका में की गई है।
