Thursday 21st of November 2024 07:54:35 PM
HomeBreaking Newsकोडरमा की चुनावी जंग और कुछ बेचैन आत्मायें 

कोडरमा की चुनावी जंग और कुछ बेचैन आत्मायें 

कोडरमा की चुनावी जंग और कुछ बेचैन आत्मायें

देश में आम चुनाव हो रहे हैं तो लाजिमी तौर पर देश की हर लोकसभा सीट पर उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं| जाहिर है, कोडरमा लोकसभा सीट भी अपवाद नहीं हो सकता, सो सरगर्मी यहाँ भी है|

लेकिन एक मामले में कोडरमा लोकसभा सीट की तस्वीर देश के अन्य चुनाव क्षेत्रों से थोड़ी अलग है| यहाँ उम्मीदवार और राजनीतिक दल तो मशक्कत कर रहे हैं लेकिन इनसे इतर कुछ ऐसी बेचैन आत्मायें परेशान हैं, जिनका किसी उम्मीदवार या पार्टी की जीत – हार से कोई लेना देना नहीं, अलबत्ता उनका गम अपनी दुकान उजड़ जाने को लेकर है| मजे की बात यह भी है कि ये जमातें खुलकर विद्रोह करने की कूवत जुटा नहीं पा रही, इसलिए इन्होने सोशल मीडिया को ही रणक्षेत्र बना रखा है, जहां इन्हें छद्म वेश धारण कर तलवार भांजने की छूट है|

इनमें से एक जमात उन लोगों की है जिन्हें एक बिहारी बाबू करीब साल – डेढ़ साल पहले से “चारा” डाल रहे थे| लेकिन अचानक बिहारी बाबू को ईडी ने लपेटे में ले लिया और खुद को सुभाष की आज़ाद हिन्द फौज समझ रही जमात अचानक अनाथ हो गयी| अब “बे – चारा” हो गयी यह जमात पानी पी पीकर सोशल मीडिया पर उस उम्मीदवार और पार्टी को कोस रही है, जिसपर उन्हें अपने बिहारी बाबू के पीछे ईडी को लगाने का शक है| हालांकि इनमें से ज्यादातर अब ठिसुआकर धीरे धीरे अपने पुराने घर में लौट रहे हैं|

ऐसा नहीं है कि केवल सेनायें ही सेनापति की वजह से परेशान है| यहां एक ऐसी सेना है जो अपने सेनापति को ही लेकर डूब गयी| यह वो जमात है जो खुद को जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति का सिपाही मानती है| फर्क केवल यह है कि सम्पूर्ण क्रांति वाले जेपी ने अपने अनुयायियों को सड़कों पर उतार दिया था, यहां अनुयायियों ने जेपी को ही सड़क पर लाकर छोड़ दिया है| कोडरमा वाले कथित लोकनायक अच्छे भले एक बड़ी पार्टी में थे, मौजूदा सूरतेहाल पर गौर करने के बाद जानकार कहते हैं कि अगर थोड़ा धीरज रखते तो आज उनके भी “अच्छे दिन” आ जाते| लेकिन अनुयायियों ने उन्हें ऐसा चने के झाड़ पर चढ़ाया कि उन्होंने खुद अपनी गाड़ी पटरी से उतार ली, घर बदल लिया| नए घर वालों ने उन्हें जल – जंगल – जमीन के खूब सब्जबाग दिखाये लेकिन जब मौक़ा आया तो दिन में ही तीन तारे दिखा दिये| अब लोकनायक तो सिर पकड़कर घर बैठ गए हैं और उनके अनुयायी सोशल मीडिया पर लोकगायक बनकर अपने हक़ हकूक की दुहाई देते हुए विलाप कर रहे हैं|

एक और जमात है जो बस विघ्नसंतोषी है| इस जमात के लोगों का मानना है कि वे उस विशेष वर्ग से हैं जिन्हें हर जायज – नाजायज काम करने की नैसर्गिक छूट मिली हुई है और हर जन प्रतिनिधि का यह दायित्व है कि उनके हर कारनामे को संरक्षण दे, चाहे वो काम हो या काण्ड हो| रानी से ऐसी उम्मीदें पूरी नहीं हुई तो उन्होंने राजकुमार का दामन थाम लिया| कुछ दिन पहले तक ऐसा भौकाल बनाया था मानों उनका राजकुमार अश्वमेध का घोड़ा पकड़कर ही मानेगा| लेकिन नियति की क्रूरता देखिये कि ऐन वक्त पर राजकुमार के साथ विनोद हो गया| तय हो गया कि महेंद्र बाहुबली के सुपुत्र सेनानायक होंगे| अब राजकुमार भल्लाल देव या तो नए सेनानायक के पीछे पीछे चलें या फिर अस्तबल संभालें| अब ऐसे में उन विघ्नसंतोषी सेनानियों की व्यथा का अंदाजा लगाईये जो न अपने राजकुमार की दुर्गति पर आंसू बहा सकते हैं, न इसके लिए महेंद्र बाहुबली के सुपुत्र से बगावत कर सकते हैं| सो ले देकर वे सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं बेचारे|

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments