31 अक्टूबर 1984 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों, बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने कर दी थी। इंदिरा गांधी जब अपने सरकारी आवास से बाहर निकल रही थीं, तभी बेअंत सिंह ने रिवॉल्वर से गोलियां चलाईं और उसके बाद सतवंत सिंह ने स्टेनगन से 25 गोलियां चलाकर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। घायल इंदिरा गांधी को तुरंत एम्स ले जाया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बच सकी।
हत्या की साजिश में केहर सिंह और बलबीर सिंह का भी नाम सामने आया। पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि सितंबर 1984 में एक धार्मिक प्रतीकात्मक घटना ने बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को हत्या के लिए प्रेरित किया।
घटना के तुरंत बाद आईटीबीपी के जवानों ने मौके पर पहुंचकर दोनों हत्यारों को पकड़ने की कोशिश की। इस दौरान बेअंत सिंह भागने की कोशिश में मारा गया, जबकि सतवंत सिंह को जिंदा गिरफ्तार किया गया।
हत्या के बाद न्यायिक प्रक्रिया ने तेजी पकड़ी। सतवंत सिंह और केहर सिंह को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा। अंततः 6 जनवरी 1989 को तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
यह हत्या न केवल भारतीय राजनीति में एक काला अध्याय बनी, बल्कि इसके बाद देश ने सिख विरोधी दंगों का भी दर्द झेला। हजारों निर्दोष सिखों की हत्या ने भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया।