रांची में कोरोना के दौर में होने वाली मौताें ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। पिछले 10 दिनों में रांची के श्मशान और कब्रिस्तान में अचानक शवाें के आने की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। रविवार को रिकॉर्ड 60 शवों का अंतिम संस्कार हुआ। इनमें 12 शव काेराेना संक्रमिताें के थे, जिनका दाह संस्कार घाघरा में सामूहिक चिता सजाकर किया गया। इसके अलावा 35 शव पांच श्मशान घाटाें पर जलाए गए और 13 शवाें को रातू रोड और कांटाटोली कब्रिस्तान में दफन किया गया। सबसे अधिक शवों का दाह संस्कार हरमू मुक्ति धाम में हुआ।
मृतकों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि मुक्तिधाम में चिता जलाने की जगह कम पड़ गई। लोगों ने घंटों इंतजार किया, फिर भी जगह नहीं मिली तो लोग खुले में ही चिता सजाकर शव जलाने लगे। श्मशान में जगह नहीं रहने की वजह से मुक्तिधाम के सामने की सड़क पर वाहनों की पार्किंग में ही शव रखकर अंतिम क्रिया करने लगे। हालात ऐसे हो गए कि देर शाम मुक्तिधाम में कई लोग शव लेकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे।
मृतक के परिजनों की पीड़ा ऐसी कि शव जलाने के लिए लगानी पड़ रही गुहार
शव जलाने के लिए अब लाेगाें काे निगम-प्रशासन से गुहार लगानी पड़ रही है। माेक्षधाम में इलेक्ट्रिक शव दाह की मशीनें खराब हुईं ताे मारवाड़ी सहायक समिति के पदाधिकारियाें के पास कुछ ही देर में पांच फाेन आए। सबकी एक ही मांग थी- अंतिम संस्कार की व्यवस्था जल्दी करवा दीजिए।
ऐसा मंजर कभी भी नहीं देखा
हरमू मुक्तिधाम में वर्षाें से लाश जलाने वाले राजू राम ने कहा- ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा। लाेग जहां गाड़ियां पार्क करते हैं, वहां अर्थियों की कतार लगी है। एंबुलेंस से शव निकालकर सड़क पर ही रख रहे हैं। अंतिम संस्कार से पहले विधि-विधान भी नहीं हाे रहे।
लोड बढ़ा तो माेक्षधाम की दाेनाें मशीनें खराब
काेराेना से माैत का आंकड़ा बढ़ा ताे हरमू माेक्षधाम में शव जलाने वाली दाेनाें मशीनें भी ठप हाे गईं। गैस से चलने वाली ये मशीनें जरूरत के हिसाब से गर्म नहीं हो पा रही थीं। इसके बाद मारवाड़ी सहायक समिति प्रबंधन ने साफ कर दिया कि जब तक मशीनें ठीक नहीं हाेंगी, तब तक यहां दाह-संस्कार नहीं हाे सकता। यह शहर का एकमात्र माेक्षधाम है, जहां काेराेना संक्रमिताें का अंतिम संस्कार हाेता है।
दाेपहर दाे बजे तक वहां काेराेना संक्रमित 12 शवाें की कतार लग गई। देर शाम तक मशीन ठीक करने की कोशिश नाकाम रही ताे नगर निगम ने संक्रमित शवाें काे घाघरा में जलाने का फैसला लिया। इसके बाद देर रात घाघरा श्मशान घाट पर एक साथ सामूहिक चिता पर संस्कार हुआ।