
झारखंड सरकार की नियोजन नीति में भाषाओं के चयन को लेकर उठे विवाद की लपटें महागठबंधन के दलों को परेशान करने लगी हैं। इसका सबसे अधिक असर कांग्रेस पर देखा जा रहा है। रामेश्वर उरावं के नेतृत्व में आदिवासी विधायकों का गुट न सिर्फ हेमंत सोरेन के फैसले के साथ है बल्कि आगे बढ-चढ़कर बोल भी रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के ग़ैर-आदिवासी विधायक अंदर ही अंदर घुट रहे हैं।
डॉक्टर अजय कुमार बनें गैर-आदिवासी विधायकों की आवाज़
दीपिका पांडे सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, उमाशंकर अकेला जैसे करीब आधा दर्जन विधायक ऐसे हैं जो भाषा के नाम पर उठे विवाद का शीघ्र पटाक्षेप चाहते हैं। लेकिन पार्टी अनुशासन के डर से ये लोग खामोश हैं, लेकिन इन विधायकों की आवाज़ बनें हैं झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार। वहीं दूसरी ओर भूषण बाड़ा, नमन विक्सल कोंगाडी, रामेश्वर उरावं, राजेश कच्छप जैसे विधायक खुलकर मगही-भोजपुरी-मैथिली और अंगिका जैसी भाषाओं के विरोध में उतर आए हैं। इनका नेतृत्व झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरावं कर रहे हैं।
जानबूझकर भाषा विवाद को दी जा रही है हवा

रामेश्वर उरावं ने सबसे पहले मारवाड़ी समाज को आदिवासी जमीन का लुटेरा बता दिया, बुधवार को एकबार फिर उन्होंने नीतीश कुमार के “बिहारी-झारखंडी भाई-भाई” का माखौल उड़ाते हुए कहा कि जबरदस्ती का भाईचारा नहीं चाहिए। हम झारखंड का बिहारीकरण नहीं होने देंगे । उधर झामुमो से स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिकू विरोध की कमान संभाल रखी है ।
सरकार से चूक हुई है, मान ले- उमाशंकर अकेला
गुरुवार को सरायकेला में विधानसभा निवेदन समिति की बैठक में भाग लेने पहुंचे बरही विधायक उमाशंकर अकेला ने कहा है कि नई नियुक्ति नियमावली में भाषाओं के चयन में चूक हुई है, सरकार को ये स्वीकार कर इसमें आंशिक सुधार कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी बातों पर जिद ठीक नहीं है।
मैं सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखूंगा- डॉ. अजय कुमार
जमशेदपुर के पूर्व सांसद एवं झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने कहा कि धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति आदि विवाद को हवा देकर वोट बटोरना कांग्रेस की संस्कृति नहीं है। कांग्रेस सभी धर्मों, जातियों और भाषाओं को बराबर सम्मान देने वाली पार्टी है । अगर कोई क्षेत्रीय सेंटिमेंट को हवा देकर वोट-बैंक बनाने की कोशिश कर रहा है तो यह लॉन्ग टर्म में खतरनाक हो सकता है।

