भाजपा के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री नागेंद्र जी रांची के प्रवास पर हैं। आम बोलचाल की भाषा में इसे दौरा कहा जाता, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा कोई “संघ दीक्षित” प्रचारक इसे प्रवास कहना ज्यादा पसंद करेंगे। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री नागेंद्र जी आरएसएस परिवार के माहौल में पले बढ़े और संगठन को सर्वोच्च मानकर चलने वाले प्रचारक रहे हैं। वे अच्छे संगठनकर्ता हैं, लेकिन झारखंड भाजपा में उन्हें नये तरह का अनुभव हो सकता है। संघ की शिक्षा है- “राष्ट्र प्रथम, संघ (परीवार) द्वीतिय और ‘मैं’ सबसे अंत में” । लेकिन झारखंड भाजपा में मेरा अहं सबसे पहले, असके बाद मैं और मेरे लोग और अंत में संगठन और पार्टी ।
गुटों में बंटी भाजपा और पार्टी से पहले स्वयं के अहं का भाव
अभी हाल ही में भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष जी ने झारखंड भाजपा के एक दिग्गज को समझाया था कि “संगठन आपके हिसाब से नहीं चलेगा, आपको संगठन के अनुसार चलना होगा” । अब उस बड़े नेता पर बीएल संतोष जी की बात का कितना असर हुआ ये तो वक्त बताएगा, लेकिन इशारा साफ था कि “ऊपर वाले” को सब मालूम है कि यहां कौन क्या कर रहा है। धर्मपाल जी के रहते नागेन्द्र जी को जिम्मेदारी मिली है तो इसकी भी कोई वजह रही होगी। क्योंकि संघ और बाजपा में कोई काम अकारण नहीं होता। पार्टी को संतरे की फांक की तरह करने वाले (ऊपर से एक लेकिन अंदर से अलग-अलग) समझ लें तो बेहतर ।
नागेन्द्र जी को पुराने वाले संघी ज्यादा भाते हैं, नये जमाने वाले थोड़े कम
नागेन्द्र जी के साथ काम करने वाले लोग बताते हैं कि भाजपा के नवनियुक्त क्षेत्रीय संगठन महामंत्री सरल,सादे और मिलनसार हैं, लेकिन इन्हें कोई तिकड़म या टैंट्रम से भरमा नहीं सकता। खूब पके-पकाये खिलाड़ी हैं। ये कुछ-कुछ पुराने जनसंघी की तरह है । जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ रहना पसंद करते हैं और धन-प्रदर्शन करने वालों के सख्त खिलाफ हैं। अभी तो वे क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बनने के बाद पहली बार आए हैं, थोड़ा माहौल का अंदाजा लेंगे । लेकिन वे ऊपर फिडबैक पूरा मुकम्मल देंगे और दुरुस्त करने मैें कोई रहम नहीं बरतेंगे , इतना यकीन है।